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खण्डहरोंका वैभव है। चीनी यात्री द्वारा वर्णित भद्रावती यही है। यात्रीने जिन गुफाओंका वर्णन किया है, वे यहाँसे एक मीलकी दूरीपर हैं और इस समय बीजासन नामक गुफाके नामसे विख्यात हैं । एक ही पहाड़ी काटकर ये गुफाएँ बनाई गई हैं। एक सीधी तथा बगलमें छोटो गलिये निकालकर, इस प्रकार एक ही गुफाको तीन गुफाओंका रूप दे दिया गया है। तीनों गुफाओंके मुख्य गर्भगृहमें भगवान् बुद्धकी विशाल प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं। सामने के भागमें जाते हुए दाहिनी ओर एक छोटी-सी कोठरी है, जिसमें तीन चार व्यक्ति सरलतापूर्वक रह सकते हैं। परन्तु वायुका प्रवेश यहाँ अब संभव नहीं जान पड़ता। गुफाके ऊर्ध्व भागमें चार बड़े छिद्र दिखलाई पड़ते हैं । संभव है वायु प्रवेशार्थ निर्माण किये होंगे, पर अब तो बन्द-से हो गये हैं । गुफा के ऊपर जो पहाड़ीका भाग है, वह ज्यादा ऊँचा नहीं है । अतः वायु-प्रवेशार्थ छिद्र बनाना भी स्वाभाविक है। बुद्ध भगवान्की प्रतिमाएँ कलाकी दृष्टिसे तो मूल्यवान् हैं, पर आवश्यकतासे अधिक सिन्दूर लग जानेसे कलात्माका साक्षात्कार नहीं होता। यहाँ प्रश्न उठता है कि इन गुफाओंका निर्माता कौन था ? तत्रस्थ एक शिलालेखमें वहाँ के बौद्ध राजा सूर्यघोष द्वारा बौद्ध मन्दिर बनवाये जानेका वर्णन है । इस राजाका पुत्र महलके शिखरपरसे गिर गया था। उसीकी स्मृति के लिए यह गुफामंदिर बनवाया गया। सूर्यघोषके पश्चात् उदयन और तदनन्तर भवदेवने सुगतके मन्दिरका जीर्णोद्धार किया' । एक समय भद्रावती नगरी बौद्धसंस्कृतिका विशाल केन्द्र था। चीनी यात्रोके वर्णनसे ज्ञात होता है कि वहाँ १४ सौ भिक्षु निवास करते थे। आज भी वहाँ भूमिमें अधगड़े गृह पर्याप्त परिमाणमें विद्यमान हैं। यदि वहाँ खनन किया जाय तो निःसंदेह बौद्ध संस्कृति एवं शिल्पकलाके मुखको उज्ज्वल करनेवाले, अतीतके भव्य प्रतीक प्राप्त होनेकी पूर्ण संभावना है । चातुर्मासके बाद कई स्थानोंपर
'राय बहादुर स्व० डा० हीरालाल-मध्य प्रदेशका इतिहास पृ० १३ ।
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