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विन्ध्यभूमिकी जैन-मूर्तियाँ कुछ प्रविष्ट प्रसंगोंका भी सफल आलेखन हुआ है । इन अवशेषोंसे जैनोंका व्यापक कला-प्रेम झलकता है। मध्यकालीन कलावशेषोंमें जैनाकृतियोंको यदि अलग कर दिया जाय तो यहाँकी कलात्मक सामग्री सौन्दर्यविहीन अँचेगी। महान् परितापका विषय है कि जैनोंकी अच्छी संख्या होते हुए भी इस ओर उनकी उदासीनता है। भारतीय पुरातत्त्व विभाग इस प्रदेशकी ओर एक प्रकारसे मौनावलम्बन किये हुए है। मूर्तियोंका, कलाकृतियोंका मनमाना उपयोग जनता द्वारा हो रहा है। नूतन भवनकी नींवें इन अवशेषोंसे भरी जाती हैं। नवीन गृहोंमें ये लोग मूर्तियोंका बेधड़क उपयोग करते हैं, पर जब कोई कलाकार वहाँ पहुँचकर साधना करता है तव पुरातत्त्व विभाग इसे अपनी संपत्ति घोषित करता है ।
प्रान्तमें मैं तात्कालिक प्रधान मन्त्री श्रीयुत श्रीनाथजी मेहता आई० सी० एस० को धन्यवाद देना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ । इन्होंने मेरी यात्राका प्रबन्ध राज्यकी ओरसे करवाया था।
१ अप्रेल १६५१]
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