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खण्डहरोंका वैभव
पुरातत्त्वकी, कहाँपर कौनसी सामग्री है ? आपको भलीभाँ ति मालूम है । मेरी भी आपने बड़ी मदद की थी।
जसोमें यों तो अनेकों जैन प्रतिमाएँ होनेका उल्लेख ऊपर आ चुका है, परन्तु उन सभीका अलग-अलग उल्लेख न कर केवल उन्हीं प्रतिमाओंकी चर्चा करना उपयुक्त होगा, जो सामूहिक रूपसे एक ही स्थानपर एकत्र हैं । कुछ जैन मूर्तियाँ
राज-भवनके निकट "जालपादेवी" का एक मन्दिर है। इसके हातेमें बहुसंख्यक जैन प्रतिमाओंके अतिरिक्त मानस्तम्भ और मन्दिरोंके अवशेष पड़े हुए हैं। प्रायः सभी कत्थई रंगके पत्थरोंपर उत्कीर्णित हैं । मन्दिरकी दीवालके पीछे तथा वाज़ारकी ओर भी कुछ मूर्तियाँ सजाकर रख छोड़ी हैं । परन्तु सभी मूर्तियाँ जिस रूपमें खंडित दीख पड़ती हैं, उससे तो यही ज्ञात होता है कि समझपूर्वक इनका सौन्दर्य विकृत कर दिया गया है। कुछेकपर सिन्दूर भी पोत दिया गया है। इन मूर्तियोंमें अधिकतर भगवान् आदिनाथ और पार्श्वनाथकी हैं। कुछ पद्मासन हैं, कुछ खड्गासन । भगवान् आदिनाथ और श्रमणभगवान् महावीरकी दो अद्भुत एवं अन्यत्र अनुपलब्ध प्रतिमाएँ इसी समूहमें हैं। इनकी विशेषता निबन्धकी भूमिकामें आ चुकी हैं । अतः पिष्टपेषण व्यर्थ ही है ।
मंदिरसे लगा हुआ छोटा-सा मकान है। इसमें संस्कृत पाठशालाके छात्र रहते हैं । इसकी दीवालमें अत्यन्त कलापूर्ण ६ जैन मूर्तियाँ लगी हुई हैं । कुछेक मूर्ति-विधानकी दृष्टिसे अनुपम एवं सर्वथा नवीन भी हैं । प्रति वर्ष इनपर चूना पोता जाता है, ३इंचसे ऊपर चूनेकी पपड़ियाँ तो मैंने स्वयं उतारी थीं। वहाँ के एक मुसलमान कारीगरसे ज्ञात हुआ कि ऐसी कई मूर्तियाँ तो हमने गृह-निर्माणमें लगा दी हैं। और इनके मस्तकवाले भागकी पथरियाँ अच्छी बनती हैं, अतः हम लोगोंको ऐसी गढ़ी गढ़ाई सामग्री काफी मिल जाती है।
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