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विन्ध्यभूमिकी जैन- मूर्तियाँ
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खड्गासन भी है। रक्तप्रस्तरपर उत्कीर्णित है । प्रतिमा सर्वथा अखण्डित है । गत वर्ष किसी ठाकुर के मकान से यह प्रतिमा उपलब्ध हुई थी और बाबाजीने यहाँ लगवा दी । मन्दिरके निकट एक नाला पड़ता है । इसपर भी पार्श्वनाथ खड्गासनमें हैं ।
कुमारमठ
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गाँव से कुछ दूर कुहाड़ामठ नामक एक विशाल मन्दिर है, सम्भवतः यह कुमारमठ ही होना चाहिए । यहाँपर विस्तृत फैली अमराई है । सघन जंगलका बोध होता है | यहाँ पीपलके नीचे बहुत से अवशेष सुरक्षित हैं, इसमें जैन प्रतिमाएँ भी पर्याप्त हैं । यह मन्दिर नागर शैलीका है । कहा जाता है कि इसमें कोई शिलोत्कीर्णित लेख भी है । पर मुझे तो दृष्टिगोचर न हुआ । मठमें कुछ टीले हैं । सम्भव हैं खुदाई करनेपर कुछ और भी पुरातत्वकी सामग्री मिले । मठ के पास एक बृक्ष के निम्न भागमें भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा पड़ी हुई है। इसे 'खैरमाई' करके लोग पूजते हैं । कोई भी व्यक्ति इसे स्पर्श नहीं कर सकता, दूरसे ही पुष्पादि चढ़ा देते हैं । पूर्व तो यहाँपर बलितक चढ़ाई जाती थी, पर अभी बन्द है । समस्त गाँव के यह प्रधान देवता माने जाते हैं । यहाँपर त्यौहार के दिनोंमें मेला भी लगता है। नवरात्र में तो पंडे भी पहुँच जाते हैं ।
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राजमन्दिर के पाससे एक मार्ग नालेपर जाता है, वहाँ सुनारके गृहके अग्रभागमें जैन प्रतिमाओं का समूह विद्यमान है । आगे चलनेपर पुरानी दीवाल के चिह्न मिलते हैं। ईंट भी गुप्तकालीन-सी जँचती हैं । इसीपर बस गई है ।
यहाँपर एक मस्जिद के पास मुसलमानोंकी बस्ती में मानस्तम्भका ६ फुटका एक टुकड़ा भी ज़मीन में गड़ा है। चारोंओर जैन प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं।
जसों में इतनी विस्तृत जैन कलात्मक सामग्री बिखरी पड़ी हैं; यदि
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