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खण्डहरोंका वैभव संगृहीत हैं, परन्तु वे इतने ध्वस्त हो चुके हैं कि उनपर कुछ भी लिखा जाना संभव नहीं।
लखुरबाग और नचनाकी बची खुची सामग्री यहाँपर संगृहीत है। (३) जसो
अन्धकारयुगीन भारतके इतिहासपर प्रकाश डालनेवाली आंशिक सामग्रीको सुरक्षित रखनेका श्रेय इस भूभागको भी मिलना चाहिए । वाकाटक वंशका एक महत्वपूर्ण लेख इसीके अँचलमें है। कनिंघम साहबने इस भू-भागके स्थानको 'दरेदा' के नामसे संबोधित किया है, पर इसका वास्तविक स्थान 'दुरेहा' है जो जसोके निकट है। खोह, नचना
और भूभरा यहींसे नज़दीक पड़ते हैं। वाकाटक, भारशिव एवम् गुप्तकालमें विकसित उत्कृष्ट शिल्प स्थापत्य एवं मूर्तिकलाके उज्ज्वल प्रतीक आज भी भीषण अटवीमें विद्यमान हैं। भारतीय इतिहास पुरातत्त्व एवं शिल्पकलाकी दृष्टिसे इस भू-भागका, बहुत प्राचीनकालसे ही, बड़ा महत्त्व
____ जसोको यदि जैन मूर्तियोंका नगर कहा जाय तो अनुचित न होगा। कारण कि आवश्यक कार्य के लिए प्रस्तर प्राप्त्यर्थ जहाँ कहीं भी जनता द्वारा खनन होता है वहाँ, जैन मूर्तियाँ अवश्य ही, भूगर्भसे निकल पड़ती हैं । इन पंक्तियोंका आधार केवल दन्तकथा नहीं है, परन्तु मैंने स्वयं हो अनुभव किया है । गत जनवरीका तीसरा सप्ताह मैंने खोजके लिए जसोंमें ही व्यतीत किया था। उन दिनों खेतोंकी मेड़पर लोग मिट्टी जमा रहे थे। आठ खेतोंमें मैंने स्वयं देखा कि दो दर्जनसे अधिक मूर्तियाँ दो दिनमें ही ज़मीनसे पाई गयीं । यहाँ न केवल जैन प्रतिमा ही उपलब्ध होती हैं, अपितु जैन मन्दिरोंके तोरण, नन्द्यावर्त, स्वस्तिक, अष्टमांगलिक एवं जैन शास्त्रोंमें वर्णित स्वप्नोंके अतिरिक्त अनेक जैन कलाके विभिन्न उपकरण भी प्राप्त होते हैं । यद्यपि आज जसोमें एक भी जैनका निवास नहीं है । परन्तु इन
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