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विन्ध्यभूमिकी जैन-मूर्तियाँ
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भागमें प्रभावलीके स्थानपर सुन्दर खुदाईका काम पाया जाता है। अब हम बाह्य भागको पार्श्वस्थ मूर्तिको भी देख लें। निम्न भागसे मूल प्रतिमाके घुटनेतक १६|| इंचकी एक स्त्रीमूर्ति खुदी है। यह मूर्ति, मूर्तिविधानकी दृष्टि से बहुत ही सुडौल और आकर्षक बनी है। मस्तकपर एक वृक्ष बताकर कलाकारने यह साबित करनेकी कोशिश की है कि प्रतिमा किसी वृक्षकी छाया में खड़ी है। वृक्षका बायाँ भाग एवं मूर्तिका बायाँ भाग खंडित है। स्त्री-मूर्तिका केशविन्यास मस्तकपर बँधा हुआ है। गलेमें मालाएँ एवं कटिप्रदेश विभिन्न अलंकरणोंसे अलंकृत है। नाभिप्रदेश बहुत स्पष्ट है । कलाकारने इस प्रतिमाका निर्माण ऐसे मनोयोगसे किया है कि वह साक्षात् स्त्री हीका आभास कराती है। प्रतिमाका खड़े रहनेका ढंग, ऊँचेसे कमर तक सीधा, बायाँ पैर आगे और कटिप्रदेश बाई ओर झुकनेके कारण स्तन एवं कटिप्रदेशके मध्य भागमें रेखाएँ पड़ गई हैं। मूर्ति के दाहिने हाथमें आम्रलुम्ब है, परन्तु बायें हाथमें क्या था, यह नहीं कहा जा सकता । दायें चरणके निम्नभागमें एक बालक हाथमें मोदक लिये बैठा है। बायें चरणके पास भी एक आकृति ऐसी दिखाई पड़ती है, जो बालककी प्रतिमा ज्ञात होती है, क्योंकि बालकके कटिप्रदेशका पृष्ठभाग बहुत स्पष्ट है। मालूम पड़ता है, वह माँसे खेल रहा हो, इस मूर्तिके निम्न भागमें आवेशयुक्त मुद्रामें शेर पूँछ उठाकर बैठा है, और एक स्त्री सामने हाथ जोड़े नमस्कार कर रही है, यद्यपि शेरके सामनेवाला भाग बहुत छोटा-सा और कुछ अस्पष्ट है, परन्तु केशविन्यास और स्तनप्रदेश बहुत स्पष्ट है। इन पंक्तियोंसे पाठक समझ ही गये होंगे कि उपर्युक्त वृक्षकी छायामें खड़ी हुई मूर्ति अम्बिकाकी ही है । बृक्ष आम्रका है, आम्रलुम्ब स्पष्ट है। दो बालक और सिंह, ये समस्त उपकरण अम्बिकाको ही सिद्ध करते हैं। अम्बिकाकी मूर्तियाँ स्वतन्त्र और परिकरोंमें बहुत-सी दृष्टिगोचर हुई हैं, परन्तु इस प्रकारकी प्रतिमा अद्यावधि मेरे अवलोकनमें नहीं आई। सम्पूर्ण प्रतिमा
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