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खण्डहरोंका वैभव
कुछेकमें गोमटस्वामीकी प्रतिमा भी। मुख्यतः इसमें यक्षिणियाँ ही रहती हैं। प्रयाग-संग्रहालयमें भी एक दो तोरण हैं, जो विन्ध्य-भूमिसे ही गये थे । मानस्तम्भ __अन्य जैनकलावशेषोंके साथ मानस्तम्भ भी प्रचुर परिमाणमें उपलब्ध हैं। रीवाँ में मानस्तम्भका उपरिमभाग अवस्थित है, जिसका शब्द-चित्र इसी निबन्धमें आगे दिया गया है । कुछेक मानस्तम्भ जसोमें मुसलमानोंकी बस्तीमें पड़े हुए हैं। इस ऊपरके भागमें सशिखर चतुर्मुख जिन रहते हैं । लाटके अग्र भागपर विविध रेखाएँ उत्कीर्णित रहती हैं। - उचहरावाले स्तंभपर तो विस्तृत लेख भी खुदा है । पर देहातियों द्वारा शस्त्र पनारनेसे यह घिस गया है । परिश्रमसे केवल "सरस्वतीगच्छ" "कुन्दकुन्दान्वये" और "आशधर" यही शब्द पढ़े गये । हाँ, लिपिसे अनुमान होता है, इसकी आयु ७०० वर्षकी होगी। यह आशधर यदि आशाधर हों तो उनका आगमन इस ओर भी प्रमाणित हो जायगा । गुर्गी और प्यौहारोके निर्जन स्थानोंमें जैन स्तंभ प्रचुर मात्रामें मिल सकते हैं, जैसा कि श्री अयाजअली सा० के कथनसे ज्ञात होता है । ये रीवाँ पुरातत्त्व विभागके अध्यक्ष हैं। रोवाँ के जैन अवशेष
रीवाँ, विन्ध्यभूमिको बर्तमान राजधानी है। पुरातन शिल्पावशेषोंकी भी इतनी प्रचुरता है कि २० लारियाँ एक दिनमें भरी जा सकती हैं । पर यहाँ उनका कुछ भी मूल्य नहीं है, तभी तो अत्युच्च कलात्मक प्रतीक योंही दैनन्दिन नष्ट हुए जा रहे हैं। रीवाँ के बाज़ारसे किलेकी
ओर जानेवाले मार्गपर बहुत कम ऐसे गृह मिलेंगे जिनपर पुरातत्त्वके अवशेष न जड़े हों, या मार्गमें न पड़े हों। राजमहलमें भी कुछ अवशेष हैं। तात्कालिक शिक्षा-सचिव श्रीयुत तनखा साहबका ध्यान मैंने इस ओर आकृष्ट किया था, पर अधिक सफलता न मिल
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