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प्रयाग-संग्रहालयको जैन-मूर्तियाँ २५१ हाथ खंडित हैं । कंठमें हँसुली प्रमुख बहुत-सी मालाएँ एवं हाथमें भी बाजूबन्द आदि आभूषण हैं। नागावलिसे हाथोंका सौंदर्य बढ़ गया है। केशविन्यासके अग्र भागमें भी आभूषण हैं। केश-विन्यास मस्तकपर त्रिवल्यात्मक है, जैसा कि ११वीं शतीकी झाँसीके पास देवगढ़पर पायो जानेवाली देवमूर्तियोंमें एवं नर्तकियोंके मस्तकपर पाया जाता है। कमल-पुष्प मस्तककी छविमें अभिवृद्धि करते हैं। नासिका खंडित होने के बावजूद भी मुख सौन्दर्य में कमी नहीं आने पायी है । शान्ति ज्यों-को-त्यों बनी है । यद्यपि बदन इतना सुन्दर और भावपूर्ण बना है, तथापि कलाकार चक्षु निर्माणमें पश्चात्पाद रहा जान पड़ता है। कटि प्रदेशमें नाना जातिकी कटि मेखलाएँ एवं स्वर्ण कटि मेखला कई लड़ोंकी सुशोभित हैं । खुदाई इतनी स्पष्ट है कि एक-एक कड़ी पृथक्-पृथक् गिनी जा सकती है । बुन्देलखंड में आज भी इस प्रकारकी कटि-मेखलाएँ, कई लड़ोंमें व्यवहृत होती हैं। देवीके दोनों चरण सुन्दर वस्त्रसे आच्छादित हैं, जो सूक्ष्मताकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, मानो कोई विविध बेलबूटोंसे छपा हुआ वस्त्र हो । चरणमें नूपुर और तोड़े बने हुए हैं। संपूर्ण प्रतिमाको एक दृष्टि से देखनेके बाद हृदयपर बड़ा गहरा असर पड़ता है। प्रतिमाकी दायीं ओर एक बालक सिंहपर आरूढ़ है। बायीं ओर भी एक बालक खड़ा है । वह देवीका हाथ पकड़े हुए होगा। दोनोंके निम्न भागमें क्रमशः स्त्री और पुरुष अंजलिबद्ध अंकित हैं | तन्निम्न भागमें कमलके दण्ड अपना सौन्दर्य विखेर रहे हैं । यह तो हुआ प्रतिमाका शब्द चित्र । अब हमें इसके परिकरकी ओर जाना चाहिए । जो इसकी सुन्दरताको द्विगुणित कर देता है। - परिकर मूल प्रतिमाके ड्योढ़ेसे अधिक भागमें है । दायीं प्रथम पंक्तिके निम्न भागमें सर्वप्रथम एक चतुर्भुजी देवीकी खड़ी प्रतिमा अंकित है । खड्ग, परशु आदि आयुधोंके साथ है । इस प्रतिमाकी ऊपरकी पंक्तिमें चार खड़ी जिन-मूर्तियाँ हैं । तदुपरि हाथी, अश्व और मकराकृतियाँ हैं। इनके ऊपर इस प्रकारके भाव उत्कीर्णित हैं, मानो कोई स्त्री पूजनकी सामग्री लिये
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