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प्रयाग-संग्रहालयकी जैन-मूर्तियाँ
२५७ की अपेक्षा अधिक प्रसिद्ध एवं व्यापक रूपसे सम्मानित स्थानपर रही है जैसा कि “रूप-मण्डन" से प्रतीत होता है। __२ नम्बरवाले चित्रमें जो आकृति प्रदर्शित है उसे मैं सकारण सयक्ष अम्बिकाकी मूर्ति ही मानता हूँ। कारण कि उभय सम्प्रदाय मान्य उद्धरण भी इसके समर्थन में ही है, उसे डा० वासुदेवशरण अग्रवाल आदिने कल्पवृक्ष माना है । परन्तु मैं इसे आम्रवृक्ष मानता हूँ । पत्तियों का आकार बिलकुल आम्र-पत्रके सदृश है । दोनों पत्तियोंके नुकीले भागपर देवियोंकी पुष्पमाला लिये आकृति है, वह एक प्रकारसे परिकरका अंग है । वृक्षके मध्य भागमें जो जिनमूर्ति दिखलाई पड़ती है वह नेमिनाथ भगवान्की ही होनी चाहिए, कारण कि अम्बिकाकी उपर्युक्त संग्रहालयमें जो मूर्ति है, उसपर भी नेमि जिन अंकित है । प्रभास-पाटन, खंभात आदि कुछ नगरोंमें १२ वीं शतीकी ऐसी अम्बिकाकी मूर्तियाँ सपरिकर उपलब्ध हुई हैं जिनके मस्तकपर नेमिनाथ भगवान्की मूर्तियाँ हैं। जो स्त्री वृक्षके दायीं ओर अवस्थित है वह निस्सन्देह अम्बिका ही होनी चाहिए। जो पुरुष दिखलायी पड़ता है उसे यदि गोमेध यक्ष मान लें तो सारी शंकाएँ दूर की जा सकती हैं। अम्बिकाकी कुछ ऐसी भी मूर्तियाँ पाई जाती हैं जो आम्र वृक्षकी छायामें अकेली ही बैठी हैं। राजगृहकी अम्बिका ___ राजगृहमें वैभारगिरि पर्वतपर गुप्तोत्तरकालीन कुछ खंडहर हैं उनमें एक मानव-कदकी प्रतिमा है, जो आम्र वृक्षकी छायामें कमलासनपर बैठी स्त्रीकी है । जनता इस स्त्रीको महाश्रमण महावीरकी माता मानती है। वस्तुतः यह अम्बिका ही है । कारण कि लुम्ब सहित आम्रवृक्ष अति
"भारतना जैन तीर्थो अने तेमनुं शिल्प-स्थापत्य, चित्र" ८७ । श्री जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ७, अंक १, पृ० १८५ ।
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