________________
२६०
खण्डहरोंका वैभव
इनकी उपयोगिता केवल श्रमणसंस्कृतिकी दृष्टिसे ही नहीं है अपितु भारतीय मानव समाजके क्रमिक विकासको समझानेके लिए भी है।
पुरातत्त्वकी विस्तृत व्याख्यामें प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंको उपेक्षा नहीं की जा सकती। वहाँ प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ भी दस हजारसे कम संगृहीत नहीं हैं। इनमें एक हजारसे अधिक जैन-ग्रन्थ भी हैं । परन्तु इन समस्त ग्रन्थोंके विवरणात्मक सूचीपत्रके अभावमें मैं समुचित रूपसे ग्रन्थावलोकन न कर सका और न मेरे पास उस समय उतना अवकाश ही था, कि एकएक पोथीको देख सकता। कुछ एक जैन चित्र भी चित्रशालामें लगे हैं, जिनका संबंध कल्पसूत्र और कालककथासे है । कलाकी दृष्टि से इनका कोई खास महत्व नहीं है। हाँ, मुगल एवं कांगड़ा शैलीके तथा तिब्बतीय बौद्ध चित्रकलाके कुछ अच्छे नमूने अवश्य सुरक्षित हैं ।
अवशेष उपलब्धि-स्थान
इतने लम्बे विवेचनके बाद प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इन अवशेषोंकी उपलब्धि कहाँसे हुई। पुरातत्त्वका इतिहास जितना रोचक और स्फूर्तिदायक होता है कहीं उससे अधिक और प्रेरणाप्रद इतिहास पुरातत्त्व विषयक साधनोंकी प्राप्तिका होता है । यहाँपर जो कलात्मक प्रतीक अवशिष्ट हैं, वे कहींसे भी एक ही साथ नहीं लाये गये हैं । समय और परिस्थितिके अनुसार सारनाथ, कौशाम्बी आदि नगरोंसे एवं विशेष भाग बुंदेलखंडसे संगृहीत किये गये हैं। एक-एक अवशेष अपनी रोचक कहानी लिये हुए हैं। पं० ब्रजमोहनजी व्यास इन अवशेषोंकी कहानियाँ बड़े रोचक ढंगसे सुनाया करते हैं। बुंदेलखंड सचमुच एक समय कलाका बहुत बड़ा केन्द्र था। प्राचीन कालसे ही बुंदेलखंडने कलाकारोंको आश्रय देकर, भारतीय संस्कृतिकी समस्त धाराओं और सुकुमार भावोंकी रक्षा, कठोर पत्थरों द्वारा की है। कलाकारोंका सम्मान न केवल साम्राज्यवादी शासक ही करते थे, अपितु नागरिकोंने भी बहु-संख्यक प्रतिभा-सम्पन्न
Aho ! Shrutgyanam