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महाकोसलका जैन -
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फूलदार १४ " ऊँचा टूटा-सा डिज़ाइनदार गुट्टा है, जो निश्चय ही किसी स्तम्भका अधोभाग है ।
- पुरातत्त्व
वे सिंहासन त्रिपुरी में प्राप्त अन्य अवशेषोंके डिज़ाइन के क्षेत्रमें बिल्कुल अनूठा और अद्वितीय है ।
इस स्थल पर डिज़ाइन के संबंध में एक उल्लेख करना प्रासंगिक होगा । कला में, इतिहास में डिज़ाइनोंका स्वर्णयुग मुग़लकालमें कहा जाता है, परन्तु वे डिज़ाइन फूल-पत्ती इत्यादि प्राकृतिक आधारोंतक ही सीमित रहे हैं । स्वयं कल्पनाके आधारपर डिज़ाइन रचे नहीं पाये जाते । प्राकृत डिज़ाइन ऐसी ही कृत्रिम और कल्पनासे गढ़ी हुई रचना है । इसका युग निश्चयपूर्वक मुगलों यहाँतक कि राजपूती वैभवके पूर्वका है । इस प्रकार के डिज़ाइन महाकोसलके अन्य अवशेषोंमें भी पाये जाते हैं, विशेषतः बुद्धदेव की मूर्ति में । अतः यह कल्पना बड़ी सहज है कि ऐसे डिज़ाइन महाकोसल की निजी और मौलिक कलात्मक देन है, और भी विलहरीके विस्तृत मधुछत्रपर ६६ " ×६६" भी इस प्रकार के डिज़ाइन अङ्कित हैं, जिनका रचना काल तेरहवीं शतीके बादका नहीं हो सकता । अत्यन्त दुःखपूर्वक सूचित करना पड़ रहा है कि इतनी सुन्दर कलापूर्ण व सर्वथा अखण्डित कृति आज गड़रियोंके शस्त्रास्त्र पनारनेके काम में आती है । म०प्र० शासनका ध्यान मैंने आकृष्ट किया । पर उसे अवकाश कहाँ ? अर्धसिंहासन भी मुझे तेवरके ही एक लढियेसे प्राप्त हुआ है ।
अम्बिका
प्रतिमा १४" X८३” है । अर्धनिर्मिता और अम्बिकाकी आसनमुद्रा प्रायः समान ही है, किन्तु इसकी रचनायें कलाकारने अधिक सन्तुलन एवं परिपूर्णता प्रस्तुत की है । नागावली बड़ी स्पष्ट है । उरोजोंकी रचना भी नैसर्गिक है । बायीं गोदमें एक बच्चा है । यह हाथ खण्डित हो गया है । अर्धनिर्मिताकी अपेक्षा अम्बिकाके वस्त्रोंकी शलें अधिक स्पष्ट हैं । चरणोंके
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