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प्रयाग-संग्रहालयकी जैन- मूर्तियाँ
यदि दूसरे देश के किसी संग्रहालय में होता तो शायद इनसे तो अच्छी ही हालत में होता !
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इस गृहमें भरहूत, खजूराहो, नागौद और जसो आदि नगरोंसे लाये हुए अवशेषोंका संग्रह किया गया है । इनमें कुछेक ऐसी ईटें हैं, जिन पर लेख भी हैं । निःसंदेह यह संग्रह अनुपम है । एक मन्दिरका मुख्य द्वार भी सुरक्षित है, जिसमें केवल कामसूत्र के आसन ही खुदे हुए हैं। यों तो प्राचीन शिल्पस्थापत्य-कलासे सम्बन्ध रखनेवाली पर्याप्त साधन सामग्री इसमें है, परन्तु जैन- मूर्तियों का भी सबसे अच्छा और व्यवस्थित संग्रह भी इसीमें है । सौभाग्य से ये साथमें एक ओर सजाकर रखी गयी हैं । इन सबकी संख्या दो दर्जन से कम नहीं होगी । प्रतीत होता है कि किसी जैनमन्दिरमें ही खड़े हों !
बायीं ओरसे मैं इनमें से कुछका परिचय प्रारम्भ करता हूँ । प्रतिमाएँ ऊपर-नीचे दो पंक्तियों में हैं ।
एक अवशेष ३२” ×१२" का है, जिसके उभय भाग में १५ जिनप्रतिमाएँ खडगासन और पद्मासन में हैं। अवशिष्ट भागको गौर से देखने से प्रतीत होता है कि यह किसी मन्दिर के तोरणका अंश है या विशाल प्रतिमाका एक अंग, पत्थर लाल हैं। इसी टुकड़े के पास एक और वैसा ही खंडितांश ४०X१७ इंचका है, इसका विषय तो ऊपर से मिलता जुलता है, पर कला-कौशल और सौंदर्य की दृष्टिसे इसका विशेष महत्त्व है । इसके मध्य भागमें शेरपर बैठी हुई अम्बामाताकी प्रतिमा है । इसके बायें घुटने पर बालक एवं दक्षिण हस्त में आम्रलुम्ब हैं। ऊपर के हिस्से में चार जिनप्रतिमाएँ क्रमशः उत्कीर्ण हैं । बायीं ओर ऋषभ और दायीं ओर पार्श्वनाथ तदुपरि देववृन्द विविध वादित्र लिये, स्वच्छन्दता पूर्वक गगन- विचरण कर रहे हैं । भाव बड़ा ही सुन्दर है । इसके समीप ही किसी स्तम्भका खंडितांश है । १३×१० इंच | मध्य भागमें पद्मासन और उभय भागमें खड्गासनस्थ मूर्तियाँ हैं ।
Aho! Shrutgyanam