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मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्त्व
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इतना तो विना किसी संकोच कहा जाता है कि प्रतिमा आदिनाथस्वामीकी है। दाहिनी ओर अम्बिकाकी एक मूर्ति है, जिसके बायें चरणपर लघु बालक, गले में हँसली पहने बैठा है। दाहिने चरणकी ओर बालक दाहिने हायमें सम्भवतः मोदक एवं बायें हाथमें उत्थित सर्प लिये खड़ा है। प्रश्न होता है कि आदिनाथस्वामीके परिकरसे अम्बिकादेवीका सम्बन्ध ही क्या ? जब कि उनकी अधिष्ठात्री अम्बादेवी न होकर चक्रेश्वरी हैं। परन्तु जाँच-पड़ताल करनेपर मालूम हुआ कि प्राचीन जैन-मूर्तियोंमें अम्बिकादेवीकी प्रतिमा स्पष्टोत्कीर्णित पाई जाती है। मथुरा और लखनऊके अद्भुतालयोंमें बहुसंख्यक प्राचीन जैन-प्रतिमाएँ, ऐसी प्राप्त हुई हैं, जिनके साथ अम्बिकादेवीकी प्रतिमा है। ये अवशेष ईस्वी सन् पूर्वके सिद्ध किये जा चुके हैं । सौराष्ट्र-देशान्तर्गत ढाँकमें, जहाँ के सिद्ध नागार्जुन थे, दसवीं शतीकी ऐसी ही जैन-प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। पश्चात् १२ वीं शताब्दीकी अर्बुदाचल-स्थापित प्रतिमाओंमें भी अम्बिकाका बाहुल्य है। साथ ही कतिपय प्राचीन साहित्यिक उल्लेख भी हमारे अवलोकनमें आये हैं, जिनसे जाना जाता है कि पन्द्रहवीं शतीतक उपर्युक्त मान्यता थी, जैसा कि सं० १४६३ की एक स्वाध्याय पुस्तिकामें उल्लिखित है :
"वारइ नेमीसर तणइ ए थप्पिय राय सुसम्मि । आदिनाह अंबिक सहिय कंगड़कोट सिरम्मि ॥"
श्री साराभाई नवाबके संग्रहमें भी अंबिका-सहित आदिनाथजीकी प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं । ऋषभदेवकी प्रतिमाके दाहिनी ओर जो देवीकी प्रतिमा है, उसे हम तादृश रूपसे तो चक्रेश्वरी माननेमें पश्चात्पद् हुए विना न रहेंगे; क्योंकि आयुधादिका जैसा वर्णन जैन-शिल्पकलात्मक शास्त्रोंमें आया है, वह प्रस्तुत प्रतिमामें आंशिक रूपमें भी नहीं घटता है। देवीके आभूषणोंको हम सामाजिक उत्कृष्टताकी कोटिमें न रख सकें, तथापि सामान्यतः उसका ऐतिहासिक मूल्य एवं महत्त्व तो है ही। केश-विन्यास बड़ा
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