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मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्त्व प्रदेशका इतिहास में लिखा है---"रायपुर जिलेके आरंग-स्थानमें एक प्राचीन वंशके राज्यका पता चलता है, जिसे राजर्षि तुल्य-कुल कहा करते थे । यदि इसका संबंध खारवेलसे रहा हो, तो समझना चाहिए कि खारवेलका वंश सैकड़ों वर्षांतक चला होगा।" इस अनुमानकी पुष्टि तत्रस्थ प्राप्त जैन-अवशेषोंसे नहीं होती, क्योंकि वे प्राचीन नहीं हैं।
रायपुरके अजायबघरमें भगवान् ऋषभदेव स्वामीकी एक प्राचीन प्रतिमा सुरक्षित है । कलाकी दृष्टि से यह मूर्ति बड़ो सुन्दर, पर खण्डित है। स्थानीय प्राचीन दुर्गस्थ महामायाके मन्दिर में दोवारपर ऋषभदेव भगवान्की एक प्रतिमा किसी सनातनीने जान-बूझकर चिपका दी है। इसका परिकर बड़ा सुन्दर है; पर अब तो इसका कुछ अंश ही सुरक्षित रह सका है । धमतरीके इतिहास-प्रेमी श्री विसाहुराव बाबर द्वारा हमें ज्ञात हुआ कि सिहावाके आस-पास भी जैन-धर्मसे सम्बन्धित लेख और अवशेष मिले हैं। ऐसे तीन लेखोंकी प्रतिलिपियाँ भी आपने हमें लाकर दी थीं। लेख विश्वसोमसेनके हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सिहावा-इलाका इतिहास और अनुसन्धानकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । तन्निकटवर्ती काँ केरस्टेटमें अनेक जैन-स्तम्भ और विभिन्न जैन-अवशेष मिले हैं । तात्कालिक वहाँ के दौरा-जज श्री एम० बी० भादुडीने हमें दो ताम्रपत्र भिजवाये थे, जिनका सम्बन्ध बल्लालदेवसे था । ये आजतक अप्रकाशित हैं।
बिलासपुर-कालेजके भूतपूर्व प्रिंसिपल डा० बलदेवप्रसादजी मिश्रसे विदित हुआ कि सकती-स्टेटके जंगलमें एक विशालकाय जैनप्रतिमा है, जो वहाँ के आदिवासियों द्वारा पूजित है । उन लोगोंकी मान्यता है कि यही उनके आराध्यदेव हैं । वे लोग प्रतिमाके समक्ष बलि भी चढ़ाते हैं । डा० साहबने प्रतिमा प्राप्त करने के लिए वहाँ के राजा साहबसे अनुरोध किया । पर प्रजा एकदम बिगड़ खड़ी हुई कि वह अपनी जान रहते किसीको भी, अपने आराध्यदेवको यहाँ से नहीं ले जाने देंगे। बात वहीं समाप्त हो गई। .
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