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खण्डहरोंका वैभव मेरे खयालसे उपर्युक्त दोनों मत भ्रामक हैं । आश्चर्य होता है निर्णायकोंपर कि उन्होंने इसकी निर्माणशैलीको तनिक भी समझनेकी चेष्टा न की । अस्तु ।
इस गौरव-स्तम्भके निर्माता मध्यप्रदेशान्तर्गत कारंजा निवासी पुनसिंह हैं और १५वीं शताब्दीमें उनने इसे बनवाया था, जैसा कि नान्दगाँवके मन्दिरकी एक धातु-प्रतिमाके लेखसे ज्ञात होता है । इस लेखको प्राप्त करने में मुझे काफी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा था । लेख इस प्रकार है
स्वस्ति श्री संवत् १५४१ वर्षे शाके १४६१ (१४०६) प्रवर्त्तमाने कोधीता संवत्सरे उत्तरगणे..."मासे शुक्ल पक्षे ६ दिने शुक्रवासरे स्वातिनक्षत्रे... 'योगे र कणे मि० लग्ने श्रीबराट ( ? ड़) देशे कारंजानगरे श्री श्रीसुपार्श्वनाथ चैत्यालये श्रीम (? मू)लसंधे सेनगणे पुष्करगच्छे श्रीमत्-वृधसेन-गणधाराचार्ये पारंपर्योद्गत श्रीदेववीर भट्टाचार्याः ।। तेषां पट्टे श्रीमद्भायराजगुरु वसुन्धराचार्य महावादवादीश्वर रायवादिर्पिबा महासकल विद्वजन सार्ध (ब) भौम साभिमान वादीभसिंहाभिनयत्रैः... विश्वसोमसेनभट्टार्काणामुपदेशात् श्रीवघेरवाल जाति खडवाड गोत्रे अष्टोत्तरशतमहोत्तंगशिखरबद्धप्रासादसमुद्धरणधीरत्रिलोक श्री जिनमहाबिम्बोद्धारक-अष्टोत्तरशत श्रीजिनमहाप्रतिष्ठाकारक अष्टादसस्थाने अष्टादशकोटि श्रुतभंडारसंस्थापक, सवालबन्दीमोक्षकारक, मेदपाट-टेशे चित्रकूटनगरे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र चैत्यालयस्थाने निजभुजोपार्जितवित्तवलेन श्रीकीर्तिस्तम्भआरोपक साह जिजा सुत सा० पुन सिंहस्य .... 'साहदेउ तस्यभार्या पुई तुकार तयोः पुत्राश्चत्वारः तेषु प्रथम पुत्र साह लखमण...'चैत्यालयोद्धरणधीरेण निजभुजोपार्जितवित्तानुसारे महायात्रा प्रतिष्ठा तीर्थ क्षेत्र... ।
दुर्भाग्यसे यह लेख इतना ही उपलब्ध हुआ है । कारण कि आगेका भाग प्रयत्न करनेपर भी मैं न पढ़ सका, घिस-सा गया है। फिर भी उपलब्ध अंशसे एक चलती हुई भ्रामक परम्पराको प्रकाश मिला ।
Aho! Shrutgyanam