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खण्डहरोंका वैभव
उल्लेखों की सत्यता सिद्ध होती है'। जैन गुफाओं में भी अनेक कथा-प्रसंग दृष्टिगोचर होते हैं।
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मध्यकालीन भारतीय शिल्प स्थापत्य कलाका प्रधान क्षेत्र पश्चिम भारत रहा है । वहाँ के राजवंश और उनके अधिकारी तथा श्रीमानोंने स्वस्थ सौन्दर्यकी उपासना में सहायक, ऐसे अनेक स्थानोंका निर्माण करवाया । श्राबूका स्थान इन सबमें प्रथम आता है । जैनाश्रित शिल्पकलाकी अनुपम सामग्री एक ही साथ अन्यत्र दुर्लभ हैं । विमलवसहिमें ऐसे दृश्योंका प्राचुर्य्य है । कहीं साधक वीतराग परमात्माकी श्रद्धापूर्वक आराधना कर रहा है, कहीं त्यागियोंकी वाणी श्रवण कर रहा है और आशीर्वाद प्राप्त कर, अपने को धन्य मानता है । कहीं पूजन विधानका दृश्य है, तो कहीं गंभीरतम भावोंका सफल श्रंकन है । तात्पर्य कि जैनोंकी प्राथमिक क्रियात्रों को भी कलाकारने अपनी उच्चतम कल्पना द्वारा व्यक्त कर सामान्य पत्थरोंको भी कलापूर्ण बना दिया है ।
पौराणिक कथा-प्रसंगों में भरत - बाहुबलि-युद्ध, बहन ब्राह्मी और सुन्दरीद्वारा प्रतिबोध, आर्द्रकुमार के जीवनकी विशिष्ट घटना हस्तितापसबोध, श्रीकृष्णका कालिय अहिदमन, अश्वावबोधतीर्थ - शमलिका बिहार की घटना के अतिरिक्त पंचकल्याणक पार्श्वनाथजीकी कमठवाली घटना --- शान्तिनाथजीका प्रसंग, नेमिकुमारका सम्पूर्ण चरित्र और श्रेयांसकुमारका दानादि कई प्रसंग अवश्य ही खुदे हुए मिलेंगे । विन्ध्यप्रान्त में तो जिन - प्रतिमानों के परिकर में ही कुछेक घटनाएँ अंकित रहती हैं। ऐसी मूर्तियाँ जसो में मैंने देखी हैं। तोरण द्वार में भी भावसूचक शिल्पका अच्छा आभास मिलता है । अपेक्षित शानकी अपूर्णता के कारण बहुसंख्यक लोग इन्हें समझ नहीं पाते, बल्कि कहीं-कहीं तो ये टूटे-फूटे अवशेष निकाल
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"भारतना जैन तीर्थो अने तेमनुं शिल्प स्थापत्य प्लेट ८ ।
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