________________
३७४
खण्डहरोंका वैभव
पनागर
किसी समय पनागरकी जाहो-जलाली जबलपुरसे भी बढ़कर थी। आज तो उसकी प्रसिद्धि केवल 'पान'के कारण ही रह गई है। पुरातत्वकी दृष्टि से पनागर उपेक्षणीय नहीं। यहाँपर कलचुरि शिल्पके सुन्दरतम प्रतीक पर्याप्त प्रमाणमें उपलब्ध होते हैं। कुछेक तो "बलैहा" तालाबके किनारेपर वृक्षोंके निम्न भागमें व कतिपय गाँवके बीचों-बीच वराहकी खंडित मूर्ति जिस चौतरेपर रखी है, वहाँपर अरक्षितावस्थामें विद्यमान है । कथित चौतरेके
आगे ही एक मज़बूत जैनमंदिर है, चारों ओर सुदृढ़ दुर्गसे घिरा यह मंदिर किसी मट्टारकका बनवाया हुआ है । वहाँ उनकी गद्दी भी रही है । मंदिरमें एक विशाल पुरातन प्रतिमाका होना बतलाया जाता है ।
थानेके सम्मुख एक गली गाँवमें प्रवेश करती है । थोड़ी दूर जानेपर "खैरदय्याका" स्थान आता है। यहाँ भी बहुतसे अवशेष पड़े हैं। जनता जिसे "खैरमाई" या "खैरदय्या” नामसे संबोधित करती है, वस्तुतः वह जैनोंकी अंबिका देवी है। २॥ फिटसे अधिक ऊँची अम्बिकाकी बैठी प्रतिमा है, आम्रलुंब बालक वगैरह लक्षण स्पष्टतः लक्षित होते हैं। देवीके मस्तकपर मगवान् नेमिनाथकी पद्मासनस्थ व पार्श्वमें अन्य खड्गासनस्थ जिन-मूर्तियाँ हैं । पृष्ठ भागमें विस्तृत आम्रवृक्ष खोदा गया है । इस समूहमें यही मूर्ति प्रधान है । खैरमाईके अनुरूप पूजा होती है, उनके मस्तकपर क्रमशः नेमिनाथ, पार्श्वनाथ व चन्द्रप्रभुकी प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं।
ऐसे ग्राममें कई समूह पाये जाते हैं, जिनमें जैन-अवशेष भी मिल जाते हैं। स्लीमनाबाद
जबलपुरसे कटनी जानेवाले मार्गपर ३६४५ मीलपर अवस्थित है । "इस गाँवको सन् १८३२ के लगभग कर्नल स्लीमनने, कोहका नामक गाँवकी
Aho! Shrutgyanam