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खण्डहरोंका वैभव अन्यत्र शायद आजतक उपलब्ध नहीं हुए। यही इनकी विशेषता है। ऊपरके भागमें भगवान्का लोच बताया है, देशना भी है और निर्वाणमहोत्सव भी, दक्षिण कोनेपर राजिमतोकी दीक्षा--गुफामें कपड़े सुखानेका दृश्य सुन्दर है, इतने भावोंका व्यतिकरण जैनकलाकी दृष्टिसे बहुत महत्त्व रखता है। इसका उदाहरण देनेका एक ही प्रयोजन है कि ऐसे साधन जहाँ कहीं प्राप्त हों, तुरन्त फोटू तो उतरवा ही लेना चाहिए ।
राजगृह-निवासी श्रीयुत बाबू कनैयालालजी श्रीमालके संग्रहमें एक प्रस्तर पट्टिका सुरक्षित है । इसके निम्नभागमें भगवान् महावीरकी प्रतिमा है। ऊपरके भागमें एक भावशिल्प है। इसमें एक महिला चारपाई पर लेटी है। परिचारिकाएँ सेवामें उपस्थित हैं। महिलाका उदर कुछ उठा हुआ-सा है और ऊपर भागमें चौदह स्वप्न हैं । इसका सम्बन्ध भगवान् महावीरके चरित्रसे जान पड़ता है। महिला उनकी माता त्रिशला है, गर्भावस्थाका यह दृश्य है। डा० काशीप्रसाद जायसवाल
और स्व० बाबू पूर्णचन्द नाहरने इसका समय १० शती स्थिर किया है । ओ रियण्टल कांफरेन्स पटनाअधिवेशनसे लौटते समय उन्होंने इसे देखा था।
मुग़लकालीन जैनमन्दिरोंमें जालियोंका खुदाव बहुत सूक्ष्म पाया जाता है, और मन्दिरके अग्रभागमें मीनार भी है। मीनारका कारण बताया जाता है कि मुग़लोंके अाक्रमणसे वह बच जाता था। मस्जिद समझकर भंजक आगे बढ़ जाते हैं। जालियोंका खुदाव काल विशेषकी देन है । मैंने बनारसमें २-३ जालियाँ देखी है जो भेलू पुरकी दादावाड़ीमें लगी हुई हैं । कलाकी दृष्टि से ये जालियाँ उत्कृष्ट हैं। इसका भास्कर्य इतना सूक्ष्म है कि वेल और पुष्पोंकी नसें तथा मध्यभागमें पड़नेवाली प्रतिच्छाया तकके भाव सफलतापूर्वक उकेरे गये हैं। सभी जालियोंका खुदाव बोर्डर्स पृथक्-पृथक् है। इनकी सुकुमार रेखाओंपर कोई भी मुग्ध हो सकता है। इसका रचना-काल औरंगजेबके बादका नहीं हो सकता । इन जालियोंको प्राप्त करने के लिए वहाँ के एक कलाप्रेमी सजनने
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