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खण्डहरोंका वैभव
सके; क्योंकि उच्च पदाधिकारी तीन सालमें संरक्षित स्मारक अवलोकनार्थ पर्यटन करते हैं; पर प्रत्येक पुरातन खण्डहरोंके निकटवर्ती प्रदेशों में नवीन शोध के लिए रहते कितने दिन हैं ? ब-मुश्किल एक-दो दिन । श्रतः जबतक पुरातत्त्व और शोध में रुचि रखनेवाले प्रान्तीय विद्वानोंको शासन वैधानिक रूपसे प्रश्रय नहीं देगा, तबतक तत्स्थानीय अवशेषोंका पता नहीं लग सकता । बड़े-बड़े स्थानों पर खुदाई करवाके अवशेषों को निकालना एवं निकले हुए अवशेषोंकी उपेक्षा करनेकी दुधारी नीति समझ में नहीं आती । आशा है, पुरातत्त्व विभाग के उच्चतम कर्मचारी इस विषयपर ध्यान देकर अपनी श्रोरसे होनेवाली भूलोंमें सुधार करने का कष्ट करेंगे और अपने नैतिक व सांस्कृतिक उत्तरदायित्वको समझने की चेष्टा करेंगे |
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प्रान्त में जैन समाज के इतिहास और पुरातत्त्व में रुचि रखनेवाले बुद्धिजीवियोंसे विनम्र निवेदन है कि वे अपने-अपने प्रदेश में पाई जानेवाली उपर्युक्त कोटिकी सामग्रीको अवश्य ही, प्रमुख सामयिक पत्रों में प्रकाशित कर, पुरातत्त्व-पण्डितों का ध्यान आकृष्ट करें, ताकि सर्वाङ्गपूर्ण जैनाश्रित शिल्प- स्थापत्य कलाका स्वरूप जनता के सम्मुख ना सके ।
सिवनी म० प्र० १४ जुलाई १६५२
Aho! Shrutgyanam