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खण्डहरोंका वैभव
हैं, जहाँ जैन- पुरातनावशेष विद्यमान हैं, कइयोंके वैयक्तिक अधिकार में भी हैं, उनका उल्लेख मैंने इसमें नहीं किया है । कुछेक अवशेषोंका परिचय या सूचनात्मक उल्लेख प्रान्त के प्रतिष्ठित विद्वान् स्व० डॉ० हीरालाल व स्व० गोकुलप्रसाद और उनकी परम्परा के अनुसार, हिन्दी गज़ेटियर तैयार करनेवाले महानुभावोंने अपने-अपने ग्रन्थों' में किये हैं । पर अब उनका पुनर्निरीक्षण वांछनीय है । क्या मालूम वे अवशेष आज वहाँ हैं या
नहीं ।
रोहणखेड़
यह ग्राम विदर्भान्तर्गत धामणगाँव से खामगाँव के मार्गपर ८ वें मीलपर अवस्थित है । तत्रस्थ अवशेषावलोकनसे ज्ञात होता है कि किसी समय यह उन्नतिशील नगर रहा होगा। संस्कृत साहित्य व भारतीय ज्योतिषशास्त्र के रचयिता, कुछ विद्वानोंको जन्म देनेका सौभाग्य इसे प्राप्त था । अपभ्रंश साहित्य महान् कवि पुष्पदन्त इसी नगरके, होनेकी कल्पना श्रीनाथूरामजी प्रेमीने की है। महिम्न स्तोत्रके निर्माता और अपभ्रंश भाषाके महाकवि
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'वे ग्रन्थ ये हैं - दमोह - दीपक, जबलपुर - ज्योति, सागर-सरोज, दुर्ग-दर्पण, नरसिंह-नयन, निमाड़-निशाकर, विलासपुर- वैभव, चाँदा-चन्द्रिका, सिवनी - सरोजिनी, मंडला- मयूख, झाड़खंड झनकार, अष्टराज अंभोज, होशंगाबाद- हुंकार, इन ग्रन्थोंमें मध्यप्रान्तके इतिहासकी सामग्री भरी पड़ी हैं । पर अब ये ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं । निर्देशित पुरातत्त्व सामग्रीका पुनर्निरीक्षण अपेक्षित है ।
'जैन-साहित्य के प्रणेताओंने भारतीय साहित्यके विकास में जिस उदारताका परिचय दिया है, वह उल्लेखनीय है । वे जन-विषयक उत्प्रेरक सक्रिय योजनाओं में सर्वाग्र स्थान रखते थे । जैनेतर उच्चतम सभी विषयोंके मूल्यवान् ग्रन्थोंपर अपनी आलोचनात्मक वृत्तियाँ व व्याख्याएँ निर्माण कर, मानव समुदाय के सांस्कृतिक स्तर परिपोषणार्थ और उच्च भावनाओंसे अनु
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