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खण्डहरोंका वैभव हैं । यहाँपर १४ वीं शताब्दीका एक लेख भी मिला है, जो दिगम्बर जैनइतिहासकी दृष्टि से मूल्यवान् है । भट्टारक पद्मनाभका उल्लेख इसी लेखमें है। ई० स० १६४५में जब हमारा चातुर्मास रायपुरमें था, तब उस मूल लेखको प्राप्त करनेका प्रयास हमने किया था । पर मालूम हुआ कि अनेक पाषाणोंके साथ वह भी किसी मकानकी दीवार में लगा दिया गया है । इसकी एक प्रतिलिपि अवश्य हमारे पास सुरक्षित है। अब भी कभी-कभी यहाँपर प्राचीन सिक्के मिल जाते हैं। ___ केलझर-पौनारसे १० मील दूर नागपुरकी ओर है । प्राचीन गणपति मन्दिर होनेसे यह एक छोटा-सा तीर्थस्थान-सा हो गया है । कहा जाता है कि यह वही मन्दिर है जिसकी पूजा नागपुरके भोंसले जब यहाँ रहते थे, किया करते थे। यह मन्दिर किलेमें ही है। किलेमें वापिकाके पास दिगम्बर-श्वेताम्बर-प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं। कलाकी दृष्टिसे अत्यन्त साधारण हैं । तत्रस्थित कतिपय स्तम्भोंमेंसे एक स्तम्भपर भगवान्का समवशरण बहुत ही सुन्दर कलात्मक ढंगसे खुदा हुआ है। हमने पुरातत्त्वअवशेषोंमें स्तम्भोंपर कहीं भी इतना सुन्दर समवशरण खुदा नहीं देखा । स्तम्भोंके खण्डित होते हुए भी मूल वस्तु यथावत् सुरक्षित है। अफ़सोस इसी बातका है कि इन स्तम्भोंपर गोबरके कण्डे सुखाये जाते हैं। . सिन्दी-केलझरसे ७ मील दूर है। यहाँ दिगम्बर जैन-मन्दिरमें ३६ इंच ऊँची पद्मावती देवीकी एक सुन्दर मनोहर प्राचीन प्रतिमा सुरक्षित है। मूर्ति सर्वथा अखण्डित है। मस्तकपर भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमा विराजमान है । इस मूर्तिकी कला असामान्य है । शरीरका कोई भी अवयव ऐसा नहीं, जहाँपर सूक्ष्म कोरणी न की गई हो। प्राचीन आभूषणोंकी दृष्टि से इस मूर्तिका विशेष महत्त्व है। पूरे प्रान्तके भ्रमणमें ऐसी मनोहर देवीकी मूर्ति हमारे अवलोकनमें नहीं आई। ____ नागपुरके अद्भुतालयमें प्राचीन जैन-तीर्थंकर और देव-देवियोंकी सुन्दर मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। अधिकतर प्रतिमाएँ कलचुरि-कलासे प्रभावित
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