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खण्डहरोंका वैभव
तब अक्सर सभी लोग मुसलमानोंको बदनाम करते हैं, परन्तु यह तो भुला ही दिया जाता है कि हमारी कलात्मक सम्पत्तिका नाश जितना म्लेच्छोंद्वारा नहीं हुआ, उससे भी कहीं अधिक हमारी ही धार्मिक असहिष्णुवृत्तिद्वारा हुआ है। कारंजा
अकोला जिले में है । श्वेताम्बर जैन तीर्थ मालाओंमें इसका उल्लेख बड़े गौरवके साथ किया गया है । यहाँसे कुछ दूर एक देवी-मन्दिरके पास गाड़ीवानोंका पड़ाव है, वहाँ जो स्तम्भांश बिखरे पड़े हैं, उनपर खड्गासन व पद्मासनमें बहुत-सी दिगम्बर-जैन-मूर्तियाँ खुदी हुई हैं । कुछ स्तंभोंको तो लोगोंने मन्दिरकी पैड़ीमें लगा दिया है ।
'एलजपुरि कारंजा नयर धनवन्त लोक वसि तिहाँ सभर, जिनमन्दिर ज्योति जागतां देव दिगम्बर करी राजता ॥२१॥ तिहाँ गच्छनायक दीगम्बरा छन सुखासन चामरधरा, श्रावक ते सुद्धधरमी वसि बहुधन अगणित तेहनि अछि ॥२२॥ वघेरवालवंशिं सिणगार नामि संघवी भोज उदार, समकितधारी जिननि नमि अवर धरम स्यूं मन नवि रमि ॥२३॥ तेहने कुले उत्तम आचार रात्रि भोजन नो परिहार,. . नित्यई पूजा महोच्छव करि मोती चोक जिन आगलि भरि ॥२४॥ पंचामृत अभिषेकि घणीं नयणे दीठी ते म्हि भणी, गुरु साहमी पुस्तक भंडार तेहनी पूजा करि उदार ॥२५॥ संघ प्रतिष्ठा नि प्रासाद बहु तीरथ ते करे आल्हाद, करणाटक कुंकण गुजराति पूरब मालव नि मेवाति ॥२६॥ द्रव्यतणा मोटा व्यापार सदावर्त पूजा विवहार, . तप जप करिया महोच्छव घणा करि जिनशासन सोहामणा ॥२७॥ संबत साति सतरि सही गढ़ गिरिनारि जात्रा कही, लाष एक तिहांवावरी ने धन मनाथनी पूजा करी ॥२८॥
Aho! Shrutgyanam