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मध्यप्रदेशका जैन पुरातत्व
नांदगाँव
यह अमरावतीसे नागपुर जानेवाले मार्ग पर १० वें मील पर, मार्ग से कुछ दूर अवस्थित है । यहाँ दिगम्बर जैन मन्दिर स्थित धातु प्रतिमाओंके लेख लेते समय एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लेख दृष्टिगोचर हुआ जो कारंजाके इतिहासपर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है, जो इस प्रकार है ।
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स्वस्ति श्री संवत् १५४१ वर्षे शाके १४६१ ( १४०६ ) प्रवर्त्तमाने कोधीता संवत्सरे उत्तरगणे मासे शुक्ल पक्षे ६ दिने शुक्रवासरे स्वातिनक्षत्रे''...'योगे र कणे मि० लग्ने श्रीबराट् (१ इ ) देशे कारंजानगरे श्री श्री सुपार्श्वनाथ चैत्यालये श्रीम ( १ भू ) लसंघे सेनगणे पुष्करगच्छे श्रीमत् — वृधसेन — गणधराचार्ये पारंपर्योद्गत श्रीदेववीर भट्टाचार्याः ॥ तेषां पट्टे श्रीमद्भाय राजगुरु वसुन्धराचार्य महावादवादीश्वर रायवादिर्पिवा महाकविद्वज्जन सार्धं ( ) भौम साभिमान वादीभसिंहाभिनय त्रैः ..... विश्वसोमसेनभट्टाकणामुपदेशात् श्रीघेरवाल जाति खडवाड गोत्रे अष्टोत्तरशतमहो संग शिखरबद्ध प्रासादसमुद्धरणधीर त्रिलोक श्री जिन महाबिम्बोद्धारक - अष्टोत्तरशत श्रीजिनमहाप्रतिष्ठाकारक अष्टादशस्थाने अष्टादशकोटिश्रुतभंडार संस्थापक, सवालक्षबन्दी मोक्षकारक, मेदपादेशे चित्रकूटनगरे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र चैत्यालयस्थाने निजभुजो पार्जितवित्तवलेन श्रीकीर्तिस्तंभ आरोपक साह जिजा सुत सा० पुन सिंहस्य " साहवेउ तस्य भार्या पुई तुकार तयोः पुत्रश्चत्वारः तेषु प्रथम पुत्र
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Aho ! Shrutgyanam
ममुद्रा संघवच्छल कीओ लाछितणो लाहो तिहां लीओ, परबिं पाई सीआलिं दूध ईषुरस नालिं सुद्ध ॥२६॥ एलाफूलि वास्यां नीर पंथीजननिं पाई धीर, पंचामृत पकवाने भरी पोषिं पात्रज भगति करी ||३०|| भोज संघवी सुत सोहांमणा दाता विनइ ज्ञानी घणा, अर्जुन संघवी पदारथनाथ 'शीतल संघवी करि शुभ काम ||३१॥ प्राचीन तीर्थमाला संग्रह भाग १ पृ० ११४-११५ ।