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मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्व
१५७ पासाओं परट्ठावियाणि तित्थयर-बिम्बाणि ॥ ( पृ० १७७ ) । अरिकेसरी राजा कौन थे और कब हुए ? अज्ञात है । विदर्भके इतिहासमें अभीतक तो ईल राजाका ही पता चला है, जो परम जैन था। अरिकेसरीका काल अज्ञात होते हुए भी, इतना कहा जा सकता है कि ६१५ पूर्व ही हुआ है । इसी समयमें शिलाहार वंशमें भी इसी नामका राजा हुआ है। अचलपुर सातवीं शताब्दीका एक ताम्रपत्र भी उपलब्ध हो चुका है। मुझे तो ऐसा लगता है कि अरिकेसरी नाम न होकर, विशेषण मात्र है, और यह राजा पौराणिक नहीं हो सकता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो सम्प्रदाय सूचक विशेषण मिलता . १२ वीं शताब्दीके पूर्व समीपवर्ती प्रदेशोंमें, मुझे 'विन्ध्य' का ही निजी अनुभव है, कि वह जैन-स्थापत्यसे समृद्ध था । इन दोनोंका तुलनात्मक अध्ययन करनेपर स्पष्ट हो जाता है कि उभयप्रान्तीय कलाकृतियाँ पारस्परिक इतनी प्रभावित हैं कि उनका पार्थक्य कठिन है। ... कलचुरि व गोंडवंश कालीन जैन-अवशेष मध्यप्रदेश में बिखरे पड़े हैं, जिनके संरक्षणको कुछ भी व्यवस्था नहीं है । कहाँ-कहाँपर हैं, इसका पता, पुरातत्त्व विभागको भी शायद ही हो, ऐसी स्थितिमें उनके अध्ययन पर कौन ध्यान दे ? पर अब समय आ गया है कि इन समुचित अन्वेषण व संरक्षणका, शासनकी ओरसे प्रबंध होना चाहिए, क्योंकि यदि कोई सांस्कृतिक भावनासे प्रेरित होकर कार्य करता भी है, तो शासनको इस पवित्रतम कार्यमें भी 'राजनीति' की गंध आती है।
प्रस्तुत प्रबन्धमें मैंने, अपनी पैदल यात्रा विहार में जिन जैन-अवशेषोंको देखा, यथामति उनका अध्ययन कर सका, उन्होंका उल्लेख करना समुचित समझा,पर यह प्रयत्न भी अपूर्ण ही है, कारण कि अभी भी बहुत-से खड़हर
डॉ० बी० ए० सालेत्तोरे, दि डैट ऑफ दि कथाकोष, जैनएण्टिक्वेरी वॉ० ४-अं०.३।
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