________________
१४८
खण्डहरोंका वैभव
मध्यमें एक पहाड़ीपर देवकुलिकामें भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा
___ यही मुनिश्री पटनासे उत्तर दिशामें ५० कोशपर 'सीतामढ़ी' का उल्लेख करते हैं जहाँ ऋषभदेव, मल्लिनाथ और नेमिनाथकी चरण-पादुका है। बैकुण्ठपुर इन पंक्तियोंका लेखक हो पाया है । यहाँसे गंगा लगभग २॥ मील पड़ती है । वहाँपर जिनवरकी न तो प्रतिमा है और न देहरी ही । साधारण पहाड़ी व जंगल तो है । खास बैकुंठपुरमें अभी तो केवल पुरातन शैव-मन्दिर है । पर हाँ, बस्तीको देखनेसे वह प्राचीन अवश्य अँचती है । चाड़में कुछ भी दृष्टिगोचर न हुआ, वहाँ मैं खास तौरसे गया था । अब रहा प्रश्न दूसरे उल्लेखका । सीतामढ़ी तो वर्तमान मिथिलाका ही नाम है । यह दरभंगा जंकशनसे ४२ मील पश्चिमोत्तरमें है। पर वहाँ उल्लेखानुसार 'चरण' तो नहीं है । इन दोनों तीर्थों का अन्वेषण अपेक्षित है।
नालंदाके विषयमें भी इन तीर्थमालाअोंके उल्लेखोंपर ध्यान देना आवश्यक है । सं० १५६१ में यहाँ १६ जैन-मंदिर होनेकी सूचना मुनि हंससोम देते हैं । विजयसागर (सं० १७१७) २ मंदिरका उल्लेख करते हैं । और सौभाग्यविजय ( सं० १७५०) एक मंदिरका ही निर्देश करते हैं । पर वे यह भी लिखते हैं कि अन्य मंदिर प्रतिमारहित हैं। ये सब उल्लेख शोधकके लिए विचारणीय है । पर अभी तो वहाँ एक ही जिनमंदिर है और एक दिगम्बर सम्प्रदायका है । अतिरिक्त मंदिर व स्तूपका क्या हुअा, थोड़े समयमें इतना परिवर्तन कैसे हो गया, यह खोजका विषय है । ऐसे और भी उदाहरण दिये जा सकते हैं । क्या पुरातत्त्व विभाग ऐसे प्रत्यक्षदर्शी महात्माओंके उल्लेखोंपर ध्यान देगा ?
'प्राचीन तीर्थमाला-संग्रह, पृ० ८१ । प्राचीन तीर्थमाला संग्रह, पृ० १३ ।
Aho! Shrutgyanam