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खण्डहरोंका वैभव
हुए मिट्टीके थरोंको सत्यशोधक वृत्ति द्वारा अलग करनेका प्रयास किया जाय, तो न केवल प्रचुर लेखन सामग्री ही उपलब्ध होगी, अपितु हमारा विमल तीत भी भविष्योन्नतिका कारण होगा ।
जैन- पुरातत्त्वकी सभी शाखाएँ समृद्ध हैं, क्या शिल्प-कृतियाँ, क्या चित्र - कला, क्या मूर्त्ति कला, क्या शिला व ताम्र-लिपियाँ और क्या ग्रन्थस्थ वाङ्मय आदि अनेक शाखाओं में प्रचुर अन्वेषणकी उत्साहप्रद सामग्री विद्यमान है | इनके अन्वेषणार्थ सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने की आवश्यकता है । पुरातन वस्तुओं में फैली हुई उच्च कोटिको सांस्कृतिक व कलात्मक परम्परा के आन्तरिक मर्मको समझने के लिए, तदनुकूल जीवन व चित्तवृत्ति अपेक्षित है । विशाल वाचन एवं गम्भीर तुलनात्मक, निष्पक्ष, निर्णायक वृत्तिके बाद ही यह कार्य सम्भव है । पार्थिव श्रावश्यकताओं में जन्म लेनेवाली कलाको, भावुक हृदय ही आत्मसात् कर सकता है ।
एक विद्वान् लिखते हैं कि
"इतिहास के स्रष्टा तो गये, पर खजित इतिहासको एकत्र करनेवाले भी उत्पन्न नहीं होते । अपनी ही मिट्टीमें अपने रत्न दबे पड़े हैं । उनको हमने अपने पैरोंसे रौंदा । इनको चुनने के लिए समुद्र के उस पारसे, 'टाड' 'फॉर्स'' 'ग्रोस' 'कनिंघाम' आदि आये । वे इतिहास गवेषणाके लिए नियुक्त नहीं हुए थे, पर वे अपने राजकीय कार्यके बाद अवकाशके समय यहाँ की प्रेम-कथाएँ व शौर्य-कथाओंसे प्रभावित हुए, इनका स्वर उनके कानोंमें पड़ा । उसो पुकारने उनके हृदयमें शोधक बुद्धि उत्पन्न की । "
भा० पुरातत्त्वान्वेषणका इतिहास
वॉरन हेस्टिंग्स के समय से पुरातत्त्वान्वेषणका इतिहास प्रारम्भ होता है । ईस्ट इंडिया कम्पनीकी सेवाके लिए आनेवाले अंग्रेजों में मिस्टर 'विलियम जॉन्स' भी थे । इनके द्वारा एशिया में सभी प्रकार के अन्वेषणका सूत्रपात हुआ । शकुन्तला और मनुस्मृतिके अंग्रेजी अनुवादने यूरुप में
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