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जैन- पुरातत्व
साधनों का संकलन तथा प्रकाशन काममें योग देनेवाले प्रमुख विद्वानों में से कुछ एक ये हैं—
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डाक्टर फुहरर, विसेन्ट ए० स्मिथ, डाक्टर भाण्डारकर (पिता, पुत्र ), डाक्टर फ्लीट, डाक्टर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर, मुनिश्री जिनविजयजी, विजयधर्मसूरिजी, बाबू कामताप्रसादजी जैन, डा० हँसमुखलाल डी० संकलिया, शान्तिलाल उपाध्याय, अशोक भट्टाचार्य, उमाकान्त शाह, प्रियतोष बनरजी, सी० रामचन्द्रम् और बाबू छोटेलालजी जैन, अगरचन्द्रजी व भँवरलालजी नाहटा, मुनि कल्याणविजयजी, डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ।
आधुनिकतम जैन ऐतिहासिक तथ्योंके गवेषियों में श्री साराभाई नवाबका नाम सबसे आगे आता है । आप स्व० डा० हीरानन्द शास्त्री जैसे सुप्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञके सान्निध्य में पुरातत्त्व विज्ञानकी शिक्षा प्राप्त कर सम्पूर्ण भारतके कोने-कोने में फैले हुए जैन 'प्रतीकों' का निरीक्षण कर अन्वेषण में प्रवृत्त हुए हैं। पुरातत्त्व के ऐसे बहुत कम विशेषज्ञ मिलेंगे, जो शास्त्रीय अध्ययन के साथ सर्वांगपूर्ण व्यक्तिगत अनुभव भी रखते हों । नवाबने अपने अनुभवों के आधारपर जैनशिल्पकला के मुखको उज्ज्वल करनेवाले दर्जनों निबन्ध सामयिक पत्रों में प्रकाशित तो करवाये ही हैं, साथ ही, भारत में जैन तीर्थों अने तेमनुं शिल्प स्थापत्य और चित्र कल्पद्रुम जैसे प्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंके कलात्मक संस्करण प्रकाशित कर, सिद्ध कर दिया है कि जैनाश्रित तीर्थस्थित शिल्प- स्थापत्यावशेषों की उपयोगिता धार्मिक दृष्टि से तो है ही, साथ ही भारतीय लोक-समाज और जन-संस्कृति के भी परिचायक हैं। जैनतीर्थोंका शिल्प भास्कर्य कलाकारोंको व समीक्षकोंको अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। जैनतीर्थ आबूपर मुनि जयन्तविजयजीने अभूतपूर्व प्रकाश डाला है । मुनिश्री जिनविजयजीने जो वर्तमान में राजस्थान पुरातत्त्व विभाग के अवैतनिक प्रधान संचालक हैं, कलिंगकी गुफ़ानोंके व इतर सैकड़ों जैनलेखोंपर
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