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खण्डहरोंका वैभव
रायपुर, मध्यप्रदेश) के जैनमदिरका पूरा शिखर ऐसे ग्रासनोंसे भरा पड़ा है, संभव है इसीलिए इसे 'भाण्डदेव का मन्दिर कहते रहे होंगे । ऐसी स्थिति में कैसे कहा जा सकता है कि भोगासन प्रतिमाएँ शिल्पियोंने आँख बचाकर बना दी होंगी । लोगोंका खयाल रहा है कि इनके रहने से दृष्टिदोष टल जाता है । इनके विषय में अपेक्षित ज्ञानकी पूर्णता के कारण समालोचकोंने मन्दिर-निर्माता व शिल्पियोंको खूब भला-बुरा कहा है । पर यथार्थ में इन अश्लील मूर्त्तियोका प्रयोजन मन्दिरों की वज्रपातादिसे रक्षा करना भी रहा है । इसके समर्थन में निम्न श्लोक रक्खे जा सकते हैं । वज्रापातादिभीत्यादिवारणार्थं यथोदितम् ।
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शिल्पशास्त्रेऽपि मण्यादिविन्यासं पौरुषाकृतिम् ॥
अधःशाखाचतुर्थांशे प्रतीहारौ मिथुनै रथवल्लीभिः शाखाशेषं
( उत्कलखण्ड ) निवेशयेत् । विभूषयेत् ॥
( अग्निपुराण )
मिथुनैः पत्रपल्लीभिः प्रमथैश्चोपशोभयेत् ।
( बृहत् संहिता )
६ लेख
आज के युग में यह बताना नहीं पड़ेगा कि प्राचीन लेखोंका क्या महत्त्व है । इतिहास और पुरातत्त्वका विद्वान् शिलोत्कीर्ण लेखोंकी उपेक्षा नहीं कर सकता, कारण कि तात्कालिक घटनावलियोंको जाननेका सर्वाधिक विश्वस्त साधन लेख ही है । साहित्यादि में अतिशयोक्तिको स्थान मिल सकता है, पर लेखों में यह बात सम्भव ही नहीं । वहाँ तो सीमित स्थान में ही सूत्ररूपसे मौलिकवस्तु उपस्थित करनी पड़ती थी ।
१ - "कल्याण-हिन्दू-संस्कृति अङ्क, पृष्ठ ६६७ । भरत " नाट्य शास्त्र" 'राजधर्म कौस्तुभ' आदि ग्रन्थोंसे भी ऐसी आकृतियोंका समर्थन होता है ।
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