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खण्डहरोंका वैभव है, जो भगवान्के विहारके आगे रहता था। देवगढ़ आदिमें पाये गये मानस्तम्भके अवशेषोंसे यह फलित होता है कि मानस्तम्भोंकी मौलिक परम्परा भले ही एक-सी रही हो, पर प्रान्तीय कला विषयक एवं निर्माण शैली सम्बन्धी पार्थक्य उनमें स्पष्ट है। देवगढ़ अादिमें पाये जानेवाले अधिक मानस्तम्भ ऐसे हैं, जिनके ऊपरके भागमें शिखर-जैसी आकृति है। बघेलखंड और महाकोसल के भूभागमें मैंने जितने भी अवशेष देखे, उनके छोरपर चतुर्मुख जिनप्रतिमाएँ खुदी हुई हैं। ये स्तम्भ चपटे और गोल तथा कई कोनों के बनते थे । एक अवशेष मेरे संग्रहमें सुरक्षित है। मुझे यह बिलहरीसे प्राप्त हुआ था । कलाकी दृष्टि से सुन्दर है । ____ मानस्तम्भपर मूर्तियाँ रखनेका कारण लोग तो यह बताते हैं कि शूद्र दूरसे ही दर्शन कर सके । इसमें तथ्य कितना है; यह तो वे ही जाने जो ऐसी बातें बताते हैं । पर जैन-मन्दिरकी सूचना इससे अवश्य मिल जाती है । ये स्तम्भ काष्ठके भी बनते थे, पर बहुत कम । दक्षिणके स्तम्भ कलाकी दृष्टि से अनुपम है। यहाँ मानस्तम्भोंपर यक्ष-यक्षिणियोंके ग्राकार खुदे हुए पाये जाते हैं। अभीतक इस मूल्यवान् सामग्रीपर समाजका ध्यान केन्द्रित नहीं हुआ है।
कुछ मानस्तम्भोंपर लेख भी खुदे रहते हैं। वे जैन-इतिहासकी सामग्री तो प्रस्तुत करते ही हैं, पर उनका सार्वजनिक इतिहासकी दृष्टि से भी बहुत बड़ा महत्त्व है। कभी-कभी सामान्य लेख बहुत ही महत्त्वको सूचना दे देता है । भोजदेव कालोन एक स्तम्भ लेख उद्धृत करना अनुचिप्त न होगा
ॐ-[1] परमभट्टार [क] महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्री भोजदेवमहीप्रवर्धमानकल्याणविजयराज्येतन्प्रदत्तपंचमहाशब्द-महासामंत श्रीविष्णु [२] म् परिभुज्यमाके [ने] लुअच्छगिरे श्रीशान्त्यायत (न] [सं] निधे श्रीकमलदेवाचार्यशिष्येण श्रीदेवेन कारा [पि तम् इदम् स्तंभम् ॥ सम्वत् ६ १६ अस्व[श्व]युजेशुक्लपक्षचतुर्दश्याम् वृ[] हस्पति
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