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खण्डहरोंका वैभव भारत सरकारकी नीतिपर हमें आश्चर्य होता है कि आज भी वह इन अवशेषोंको रक्षाकी अोर समुचित ध्यान नहीं दे रही है। यदि श्रीपाल महाशयकी मोटरका एञ्जिन खराब न होता तो शायद अभीतक वे मूर्तियाँ गिट्टी बनकर सड़कपर बिछ गई होतीं। सम्भव है दक्षिण भारतकी ओर
और भी ऐसी गुफाएँ मिलें । इलोरा
पश्चिमी गुफा मंदिरोंमें एलागिरि-इलोराका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत भाषाके साहित्यमें इसका नाम 'एलउर' मिलता है । धर्मोपदेशमालाके विवरण ( रचनाकाल सं० ६१५) समयज्ञ मुनिकी एक कथा आई है, कि वे भृगुकच्छ नगरसे छलकर 'एलउर' नगर आये और दिगम्बर बसहीमें ठहरे,' इससे जान पड़ता है, उन दिनों एलउरको ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। दिगम्बर बस्तीसे गुफाका तो तात्पर्य नहीं है ? यहाँ के गुफा-मन्दिर भारतीय शिल्पकी अमर कृतियाँ हैं । इनके दर्शन जीवनकी अमूल्य घड़ी है। कोई भी शिल्पी, चित्रकार, इतिहासज्ञ या धर्मके प्रति अनुराग रखनेवाले के लिए प्रेरणात्मक सामग्री विद्यमान है। सौन्दर्यका तो वह तीर्थ ही है। भारतीय संस्कृतिकी तीनों धारात्रोंका यह संगम स्थान है। तीससे चौंतीस गुफाएँ जैनोंकी हैं । इनकी कला पूर्णतया विकसित है। जैनाश्रित चित्रकलाको रेखाएँ यहींसे प्रतिस्फुटित हुई हैं। फर्गुसनको स्वीकार करना पड़ा है कि "कुछ भी हो, जिन शिल्पियोंने एलोराकी दो सभाओं (इन्द्र और जगन्नाथ) का सृजन किया, वे सचमुच उनमें स्थान पाने योग्य है, जिन्होंने अपने देवताओंके सम्मानमें निर्जीव
१"तओ नंदणाहिहाणो साहू कारणान्तरेण पट्टविओ गुरुणा दक्खिणावहं । एगागी वच्चं तो य पओसे पत्तो एलउरं"
-धर्मोपदेशमाला, पृ० १६१ . . (सिंघी-जैन-ग्रन्थमाला)
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