________________
११२
खण्डहरोंका वैभव
I
ब्राह्मणोंके मन्दिर अबतक किसी न किसी दिशा में विद्यमान हैं। देश-भेदके अनुसार इन मन्दिरों की शैली में भी अन्तर है । कृष्णानदी के उत्तर से लेकर सारे उत्तरीय भारतके मन्दिर आर्य शैलीके हैं और उक्त नदीके दक्षिणके द्रविड़ शैली के | जैनों और ब्राह्मणों के मंदिरोंकी रचनायें बहुत कुछ साम्य है । अन्तर इतना ही है कि जैन मन्दिरोंके स्तम्भों, छतों आदि में बहुधा जैनोंसे संबंध रखनेवाली मूर्तियाँ तथा कथाएँ खुदी हुई पाई जाती हैं और ब्राह्मणोंके मन्दिरों में उनके धर्म संबंधी, बहुधा जैनोंके मुख्य मन्दिरके चारों ओर छोटी-छोटी देवकुलिकाएँ बनी रहती हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं । ब्राह्मणों के मुख्य मन्दिरोंके साथ ही कहीं-कहीं कोनों में चार ओर छोटे-छोटे मन्दिर
होते हैं ।
।
"ऐसे मन्दिरों को पंचायतन मन्दिर कहते हैं । ब्राह्मणोंके मंदिरों में विशेषकर गर्भगृह रहता है, जहाँ मूर्ति स्थापित होती है और उसके आगे मंडप | जैन मन्दिरों में कहीं-कहीं दो मंडप और एक विस्तृत वेदी भी होती है । दोनों शैलियों के मंदिरों में गर्भगृहके ऊपर शिखर और उसके सर्वोच्च भागपर आमलक नामका बड़ा चक्र होता है । आमलकके ऊपर कलश रहता है, और वहीं ध्वजदंड भी होता है' ।
आर्य और द्रविड़ दोनों शैलियोंके जैनमन्दिर पर्याप्त मिलते हैं ।
भाजीने की है,
9
उत्तर भारतीय मन्दिरोंकी जिस आर्यशैलीकी चर्चा उसमें भी प्रान्तीय भेदोंको लेकर कई उपशैलियाँ बन शिखर में तो बहुत ही परिवर्तन हुए हैं । कई स्थानों पर
मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ० १७५, ६ ।
Aho ! Shrutgyanam
गई हैं। विशेषकर
एक ही शैली के