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खण्डहरोंका वैभव
इन गुफाओंमें जैनमूर्तियाँ भी पद्मासनमें हैं।
यहाँसे कुछ दूर संगीतविषयक एक शिलोत्कीर्ण लेख' भी प्राप्त हुआ है। जैन-आगमोंमें स्थानांग और अनुयोगद्वार ( जो ईस्वी पूर्वकी रचनाएँ हैं ) में संगीतका विषय आता है । उपलब्ध लेखसे शास्त्रीय शब्द भी मिलते-जुलते हैं। . प्रसिद्ध गुफाओंका उल्लेख ऊपर किया गया है। इनके अलावा भी धारासिव' विन्ध्याचल बामचन्द्र, पाटन; मोमिनाबदा चामरलैन, एवं औरंगाबाद की गुफाएँ जैनधर्मसे सम्बन्ध रखती हैं। . इन गुफाओंके दो प्रकार किसी समय रहे होंगे या एक ही गुफामें दोनोंका समावेश हुआ होगा, कारण कि जैनोंका सांस्कृतिक इतिहास हमें बताता है कि पूर्वकालमें जैनमुनि अरण्यमें ही निवास करते थे, केवल भिक्षार्थ-गोचरीके लिए-ही नगरमें पधारते थे। ऐसी स्थितिमें लोग व्याख्यानादि औपदेशिक वाणीका अमृत-पान करनेके लिए, जंगलोंमें जाया करते थे, जैसा कि पौराणिक जैनआख्यानोंसे विदित होता है । जिनमंदिरकी आत्मा-प्रतिमाएँ भी नगरके बाहर गुफाओंमें अवस्थित रहा करती र्थी । ऐसी स्थितिमें सहजमें कल्पना जागृत हो उठती है कि या तो दोनोंके लिए स्वतंत्र स्थान रहे होंगे, या एक ही में दोनोंके लिए पृथक्-पृथक् स्थान रहे होंगे । मैंने कुछ गुफाएँ ऐसी देखी भी हैं । प्राचीन मन्दिरके नगर बाहर बनाये जानेका भी यही कारण है । मेवाड़ादि प्रदेशोंमें तो जैनमन्दिर जंगलोंमें बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध होते हैं, वे गुफाओंकी पद्धतिके अवशेषमात्र हैं। वहाँ ताला वगैरह लगानेकी आवश्यकता
'एपिग्राफिया इंडिका, भाग १२, केव टेम्पिल्स ऑफ इंडिया, आर्कियोलॉ जिकल सर्वे ऑफ वेस्टर्न इंडिया भा० ३, पृ० ४८-५२,
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