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खण्डहरोंका वैभव क्षत्रप कालीन एक मूल्यवान् लेख भी प्राप्त हुआ है, जो तात्कालिक जैनइतिहासकी दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । गुफा चन्द्राकार होनेसे ही इसे चन्द्रगुफा कहते हैं। दिगम्बर जैन-साहित्यको व्यवस्थित करनेवाले श्रीधरसेनाचार्यने इसीमें निवास किया था। पुष्पदन्त और भूतबलिका अध्ययन इसी गुफामें हुआ था, परन्तु इस पूज्य स्थानकी अोर जैनसमाजका ध्यान नहिंवत् है।
ढंकगिरि और चन्द्रगुफासे इतना तो निश्चित है कि उन दिनों सौराष्ट्रमें जैन-संस्कृतिका अच्छा प्रभाव था और गुफा-निर्माण विषयक परम्परा भी थी। बादामी
ईस्वी सन्को दूसरी शतीमें यह स्थान पर्याप्त ख्याति पा चुका था, कारण कि सुप्रसिद्ध लेखक टालेमीने इसका उल्लेख किया है। प्रथम यहाँपर पल्लवोंका दुर्ग था। चौलुक्य पुलकेशी प्रथमने इसे हस्तगत किया । तदनन्तर पश्चिमी चौलुक्य (ई० स० ७६० ) और राष्ट्रकूटों ( ईस्वी सन् ---७६०-६७३) का आधिपत्य रहा। बाद कलचुरि एवं होयसलवंशने सन् ११६० तक राज्य किया। तबसे देवगिरिके यादवोंकी सत्ता १३वीं शती तक रही।
(१) .....स्तथा सुरगण [1] [क्षत्रा] णां प्रथ [म].. (२) चाष्टनस्य प्र पौ] त्रस्य राज्ञः क्ष [प]स्य स्वामिजयदामपे
[] त्रस्थ राज्ञो म हा] ......... (३) [चै त्रशुक्लस्य दिवसे पंचमे इ [ह] गिरिनगरे देवासुरनागय
[१] राक्षसे.......... (४) 'थ. [पु] रमिव केवलि [ज्ञा] न स..."नां जरमरण [1]......
एपीग्राफिया इंडिका भाग १६, पृ० २३६,
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