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बाल्य काल
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'आहे क्षिणि जोवर क्षिणि सोवइ रोवइ लही प्रालि कर कर मोड़इ श्रोड नक्सर हार ।। था ०फा० १०३।
लगार ।
बालक श्रादीश्वर लड़खड़ाते डगों से चलने लगे हैं। उनके पैरों में स्वर्ण के घुंघरू पड़े हैं। जब वे चलते हैं तो उनमें से प्रण घ्रण की मधुर ध्वनि निकलती है। जिसे सुनकर नाभिराज प्रौर मरुदेवी दोनों को ही अपार हर्ष होता है
'आहे प्रण प्रण घूघरी बाजइ हेम तणी बिहु पाइ ।
तिम तिम नरपति हरखड मरुदेबी माइ || प्रा० [फा०, १०१ ॥
अब बालक कुछ चलने लगा है। उसके मस्तक पर टोपी है। कानों में कुण्डल झलक रहे हैं। जो देखता है, देखता ही रह जाता है। उसे तृप्ति नहीं होती -
'आहे अंगोह श्रंगि मनोपम उपम रहित शरीर । टोपीय उपीय मस्तकि बालक छह पण वीर ||६५|| आहे कनिय कुण्डल झलक खलक नेउर पाउ । जिम जिम मिरल हियजड तिम-लिम भाई ||२६||
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बालक ऋषभदेव श्रब कीड़ा करने लगे । इन्द्र ने उनके साथ खेलने के लिए देव भेज दिए । वे देव भगवान कांसा रूप बनाकर उनके साथ खेलते थे। वे ऐसे लगते थे, मानो वे भी ऋषभदेव हों। वही रूप, वही शरीर, वही वय । सभी बातों में समानता । भगवान का बाल सौन्दर्य कितना मोहक था । और जब वे रत्न जड़ित प्रांगन में खेलते हैं तो प्रांगन में अपना प्रतिबिम्ब देखकर स्वयं ही मुग्ध हो जाते हैं। जब वे तोतली बोली बोलते हैं तो माता मरुदेवी उन पर बलि बलि जाती हैं। उनका धूल धूसरित वेष तो ऐसा लगता है, मानो सौन्दर्य साकार हो उठा हो । भगवान के इस अनोखे रूप और अनोखो लीला का सरस वर्णन अपभ्रंश भाषा के महाकवि पुष्पदन्त ने 'महापुराण' में किया है, जिसे पढ़कर भगवान की वह बाल छवि आंखों के आगे तैरती सी प्रतीत होती है। सेसवलीलिया की लमसीलिया पहुणा वाविया केण ण भाविया ॥ धूली धूसर वयगय कडिल्लु । सहजायक बिलोंतलु जडिल्लु || हो हल्ल जो जो सुद्ध सुर्ब्राह । पई पणवंत
सूयगण ॥ ias frees free मलेण । का सुवि मलिगुण ण होइ मणु ॥ धूल धूसरी कts foकिणी सरी । जिरुव मसीलउ कीलइ बालउ ||
भगवान की इस छवि पर कौन नहीं रीझ उठेगा। उनके वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह था। उनके शरीर पर नौ सौ व्यंजन और एक सौ आठ शुभ लक्षण थे ।
जन्म से ही उनके शरीर में अनेक विशेषतायें थी। सर्व साधारण से उनका शरीर असाधारण था। उन्हें पसीना नहीं भाता था। शरीर निर्मल था। दूध के समान घवल रक्त था । वच वृषभनाराच जन्म के इस प्रतिय संहनन था । समचतुरस्रसंस्थान था । उनका रूप अनुपम था। चम्पक पुष्प के समान शरीर में सुगन्धि थी । १००८ लक्षण थे। अनन्त बलवीर्य था । तथा वे हित-मित मधुर भाषण करते थे। इस प्रकार जन्म से ही उनमें ये दस विशेषतायें थीं, जिन्हें जन्म के दस प्रतिशय कहा जाता है।