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जन.रामायण
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कुछ दिनों के बाद सुमित्रा ने भी रात्रि के पिछले प्रहर में पांच स्वप्न देखे--सिंह, पर्वत पर रक्खा हुआ सिंहासन, गम्भीर समद्र, उगता हमा सर्य और मांगलिक चक्ररत्न । रानी ने उठकर पति से स्वप्नों का फल पछा तो राणा ने बताया-देवि ! तुम्हारे गर्भ में चकरल से त्रिखण्ड को विजय करने वाला यशस्वी पुत्र उत्पन्न होगा। रानी स्वप्न का फल सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई।
नौ माह पूर्ण होने पर अपराजिता के फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी को सूर्य के समान कान्ति वाला शुभलक्षण पूत्र उत्पन्न हमा। पुत्र के वक्षस्थल पर पद्म चिन्ह था । अतः बालक का नाम पद्मनाभ (रामचन्द्र) रक्खा गया। सुमित्रा ने भी शुभ लक्षणों वाले लक्ष्मण पुत्र को जन्म दिया । उस समय शत्रुभों के घर में भयकारी अपशकुन हुए। सूर्य-चन्द्रमा के समान दोनों बालक क्रीड़ा करने लगे।
केकामती ने भरत नाम के पुत्र को जन्म दिया तथा सुप्रभा ने शत्रुघ्न को। चारों पुत्र इतने शोभित होते ये, मानों संसार को सहारा देने वाले चार स्तम्भ हों।
राजा ने ऐहिरून नामक एक विद्वान् ब्राह्मण को ओ सब शस्त्र-शास्त्रों का ज्ञाता था, चारों राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा के लिये नियुक्त किया और अल्प समय में ही चारों पुत्र शस्त्र-शास्त्रों में निष्णात हो गये।
राजा जनक के भामण्डल मोर सीता का जन्म-मिथिला के राजा जनक की स्त्री विदेहा गर्भवती हो, यथासमय विदेशा के यगस सन्तान उत्पन्न हई-एक पुत्र और दूसरी पुत्री । पुत्र के उत्पन्न होते ही पूर्व जन्म के बर के कारण एक देव उसे उठाकर ले गया और उसे ग्राभूषण पहना कर तथा कानों में देदीप्यमान कुण्डल पहनाकर प्रग्बी पर लिटा मया।
चन्द्रगति नामक एक विद्यापर अपने विमान में प्राकाश मार्ग से जा रहा था । उसक दृष्टि देदीप्यमान पाभषण पहने बालक पर पड़ी। वह नीचे उतरा और तेजस्वी बालक को देखकर वह उसे उठाकर अपने महलों में वापिस गया । वहाँ उसकी रानी पुष्पवती अपनी शय्या पर सो रही थी। राजा ने उस बालक को रानी की जंघामों के बीच में रखकर रानी को जगाया और रानी से बोला-रानी! उठो, तुम्हारे बालक उत्पन्न हया है। रानी ने उठकर उस बालक को देखा तो वह विस्मय में भरकर पूछने लगी-'यह सुन्दर बालक किसका है। मैं तो बांझ हैं। पाप क्यों मुझसे इस प्रकार हास्य करते हैं।' राजा बोला-'रानी! स्त्रियों के प्रच्छन्न गर्भ भी होता है। सम्हारेभी ऐसाडीमपा। रानी को फिर भी पति के वाक्य पर विश्वास नहीं हुमा। वह पुनः पूछने लगी-'यदि यह बालक मेरे ही गर्भ से हमा है तो इसके मनोहर कुण्डल कहाँ से आये।' अब राजा सत्य बात को छुपा नहीं सके और उन्होंने रानी को पत्र मिलने की सारी घटना सुना दी और कहा-तुम अब इसे अपना ही पुत्र मानकर पालन करो और लोगों को भी यही बताना है कि तुम्हारे गूढ गर्भ था। तुमने ही इसको जन्म दिया है।
राजा की मात्रा से रानी प्रसूतिगृह में गई। राजा ने सारे रथनपुर नगर में पुत्र-जन्म के समाचार प्रचारित कर दिये प्रौर धूमधाम से पुत्र जन्मोत्सव मनाया। देदीप्यमान कुण्डल धारण करने के कारण बालक का नाम भामण्डल रक्खा गया । बालक धाय को सौंप दिया गया और अपने पुत्र की तरह ही उसका लालन-पालन होने मगा।
उधर मिथिलापुरी में राजकुमार के अपहरण का समाचार जानकर सारी प्रजा में शोक छा गया। रानी. विदेहा पुत्र-शोक से विलाप करने लगी। राजा जनक ने रानी को धैर्य बंधाया-तुम चिन्ता क्यों करती हो । तुम्हारा पूत्र किसी ते हर लिया है। वह अवश्य जीवित है और एक न एक दिन तुम्हें अवश्य मिलेगा। इसके पश्चात् राजा जनक ने अपने मित्र राजा दशरथ को यह समाचार भेज दिया । दोनों ने ढंढने का बड़ा प्रयत्न किया किन्तु पुत्र नहीं मिला।
इधर जानकी धीरे धीरे बढ़ने लगी। उसकी बाल सुलभ लीलाओं को देखकर कुटुम्बी जन पुत्र-शोक को धीरे-धीरे भूमने लगे। जानकी के नेत्र कमल सदृश थे। वह मनिय सौन्दर्य को लेकर अवतरित हई थी। ऐसा लगता था, मानों कोई देवी ही पृथ्वी पर मा गई हो । प्रायु के साथ उसके गुण और सौन्दर्य भी बनने लगा। वह अपने बचपन से ही पृथ्वी के समान क्षमाषारिणी थी। प्रतः लोग प्यार में उसे सीता (पृथ्वी) कहने लगे और बाद