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ब्राह्मदत्त चक्रवर्ती
हिन्दू परम्परा में भी ब्रह्मदत्त का कथानक मिलता है। 'महाभारत' और 'हरिवंश पुराण' में ब्रह्मदत्त का जो चरित्र दिया गया है, वह जैन परम्परा से बहुत कम अंशों में मिलता है। जैन परम्परा के कथानकों-विशेषतः ६३
शलाका पुरुषों--का चरित्र प्रायः सभी म्रन्थों में समान मिलता है, अन्तर प्राय: विस्तार और हिन्दू परम्परा में संक्षेप का ही रहता है। उनके काल के सम्बन्ध में समस्त जैन वाइमय में एकरूपता और एकब्रह्मदत्त कथानक मत्य प्राप्त होता है। जबकि दूसरी ओर हिन्दू पुराणों में यह वैशिष्ट्य नहीं मिलता, उनमें
__ चरित्र और कालगत असमानतायें दृष्टिगोचर होती हैं। इसलिये जब हिन्दू पुराणों में किसी चरित्र के सम्बन्ध में ऐकमत्य नहीं है, ऐसी दशा में जैन और हिन्दू शास्त्रों के पौराणिक पाख्यानों में ऐकमत्य खोजना कहाँ तक संगत है। दोनों परम्पराओं के तत्सम्बन्धी प्राख्यानों में अपनी-अपनी विशेषता है।
हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मदत्त महाभारत से पूर्व काम्पिल्यपुर में उत्पन्न हुआ था। पूर्व भव में वह एक पक्षी था। उसने एक राजा का वैभव देखकर यह विचार किया था कि यदि मैंने कोई तप या सुकृत किया हो तो मुझे भी ऐसी विभूति मिले । उसे तथा उसके अमात्य कण्डरीक कोसरोवर को देखकर अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो आया और उसने ब्राह्मण को बहुत धन दिया। पूर्व भवों का वर्णन करते हुए बताया है कि वह दशार्ण में सात बार व्याध बना, कालिजर पर्वत पर मग बना, शरद्वीप में चावाक, मानसरोवर में हंस, कुरुक्षेत्र में आभिजात्य ब्राह्मण बना । ब्रह्मदत्त ने देवल ब्राह्मण की श्यामा कन्या सन्मति से विवाह किया। वह पशु-पक्षियों की भाषा जानता था। एक नर पिपीलिका को मादा पिपीलिका से काम-याचना करते हुए सुनकर उसने अट्टहास किया । अन्त में पूजनिका नामक एक चिड़िया ने उसकी दोनों माँखें फोड़ दीं।
१. हरिवंश पुराण पर्व १ अ० २५ श्लोक ११-१२ २. महाभारत शान्ति पर्व म. १३९ श्लोक ५; अ० २२४ श्लोक २६ ३. हरिवंश पुराण पर्व १ अध्याय २३ श्लोक ४३.४४
२२-२३ पर्व १ अध्याय २५ श्लोक २०-२१
२३ , २६ २४ , ३-४