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भगवान महावीर
है, जबकि पार्जोटर के अनुसार यह काल १३६ वर्ष है। किन्तु इन दोनों मतों के विरुद्ध श्री त्रिभुवनदास ऐल शाहू Ancient India, Vol. I में यह काल २२६ वर्ष बताते हैं । इन्होंने इस वंश के राजाओं का विस्तृत इतिहास और उनकी काल-गणना दी है। आपकी मान्यता का सार इस प्रकार हैकाशी में बहद्रथ वंश के राजा अश्वसेन राज्य करते थे जो भगवान पार्श्वनाथ के पिता थे। अश्वसेन को मृत्यु के पश्चात् काशी की गद्दी पर शिशुनाग नामक एक क्षत्रिय राजा बैठा। इसी राजा से शिशुनाग वंश चला। मत्स्य पुराण में शिशुनाग वंश के राजाओं का राज्य काल ३३३ वर्ष बताया है। शिशुनाग वंश के पश्चात् मगध की गद्दी नन्द वंश के राजाओं के अधिकार में श्रा गई। उनका राज्य काल १०० वर्ष है ।
अश्वसेन इक्ष्वाकुवंशी थे किन्तु शिशुनाग वैशाली के लिच्छ सम्बुज्जि वंश का था । शिशुनाग ने काशी के राज्य पर बलात् अधिकार कर लिया। इससे कोशल नरेश वृत्त को बहुत क्षोभ हुआ क्योंकि वह भी इक्ष्वाकुवंशीय था और वंश के नाते काशी पर अपना अधिकार मानता था। उसने काशी के ऊपर कई बार आक्रमण किया, किन्तु शिशुनाग पर विजय प्राप्त नहीं कर पाया। कुछ समय के पश्चात् मगध के मल्ल क्षत्रियों
शिशुनाग को मगध का शासन सूत्र सम्हालने का अनुरोध किया । तदनुसार शिशुनाग अपने पुत्र काकवर्ण को काशी का शासन सुपुर्द करके मगध चला गया । शिशुनाग की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर कोशल नरेश ने काकवर्ण के ऊपर श्राक्रमण करके काशी के ऊपर अधिकार कर लिया। शिशुनाग को जब इसकी सूचना मिली तो उसने कोशल नरेश के ऊपर भयानक वेग से आक्रमण कर दिया और पुनः काशी पर अधिकार करके उसे मगध राज्य में मिला लिया। शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात् इस वंश में काकवर्ण, क्षेमवर्धन और क्षेमजित हुए। फिर प्रसेनजित हुआ। इसके समय में मगध की राजधानी कुशाग्रपुर थी। राजधानी में सभी मकान श्रीर महल लकड़ी के बने हुए थे। किन्तु कभी कभी इन मकानों में आग लग जाती थी। इस कठिनाई से परेशान होकर प्रसेनजित ने वैभारगिरि के शिखर के ऊपर एक भव्य प्रासाद बनवाया । प्रजा भी पर्वत के ऊपर भवन बनाकर रहने लगी। किन्तु राजधानी पर्वत के ऊपर होने के कारण व्यापार और यातायात की बड़ी असुविधा होने लगी । तब श्रेणिक ने पहाड़ा को तलहटी में राजगृह नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।
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श्रेणिक को राज्याधिकार किस प्रकार मिला, इसके सम्बन्ध में बड़ा रोचक विवरण मिलता है । प्रसेनजित के बहुत से पुत्र थे ! प्रसेनजित ने अपना उत्तराधिकारी निर्वाचित करने के लिये दो उपाय किये। उसने मिठाई से भरी टोकरियाँ और पानी से भरे ककने घड़े रखवा दिये। उन सबका मुख बांध दिया गया। तब उसने अपने सब पुत्रों को बुलाया और उनसे टोकरी और घड़े बिना तोड़े या बिना खोले मिठाई खाने और पानी पीने का प्रादेश दिया। सभी राजकुमार किकर्तव्यविमूढ़ बने एक दूसरे का मुख देखने लगे। उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा । किन्तु श्रेणिक ने पहले टोकरी को खूब हिलाया, जिससे मिठाई टूट गई और छेदों में से टुकड़े निकलकर गिरने लगे। उसन मजे से मिठाई खाई। फिर उसने घड़े के चारों ओर कपड़ा लपेट दिया । जब कपड़ा भीग गया तो उसने एक पात्र में वह निचोड़ लिया। इस प्रकार कई बार करने पर पात्र जल से भर गया। तब उसने जल पीकर अपनी पिपासा शान्त की।
राजा ने दूसरी परीक्षा इस प्रकार ली--उसने राजकुमारों को एक कक्ष में दावत दी । ज्यों ही राजकुमार भोजन करने लगे, तभी उनके ऊपर शिकारी कुत्ते छोड़ दिये गये । राजकुमार अपने प्राण बचाकर भागे, किन्तु श्रेणिक निश्चिन्ततापूर्वक भोजन करता रहा। जब कुत्ते उसकी ओर आते, वह अन्य राजकुमारों की थाली में से भोज्य पदार्थ कुत्तों की ओर फेंक देता । कुत्ते उन्हें खाने लगते। इस प्रकार उदरपूर्ति करके श्रेणिक उठ खड़ा हुआ । राजा उसकी सूझ-बूझ और आपत्तिकाल में भी तत्क्षण बुद्धि को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। वह समझ गया कि यदि श्रेणिक राजा बना तो प्रजा उससे सन्तुष्ट पौर सुरक्षित रहेगी। इस प्रकार श्रेणिक पिता की मृत्यु के पश्चात् राज्यासीन हुआ |
१. The journal of the Orissa Bihar Research Society, Vol. 1. p. 76 तारानाथ नन्द राजाओं को भी इसी वंश का बताते हैं ।