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भगवान महावीर रोग या घटना में शतानीक को मृत्यु होगई। उस समय शतानीक का पुत्र उदयन केवल ६-७ वर्ष का था। शतानीक की मृत्यु होने पर चण्ड प्रद्योत उस समय तो लौट गया किन्तु कुछ माह बाद वह फिर कौशाम्बो पर चढ़ दौड़ा। उसने मगावती के पास सन्देश भेजा--या तो मेरी इच्छा पूरी करो, अन्यथा युद्ध के लिये तैयार हो जायो। मुगाबती बड़ी समझदार थी। उसने उत्तर दिया-'मुझे प्रापका पादेश स्वोकार है, किन्तु उदयन अभी निरा बालक ही है । वह कुछ बड़ा हो जाय और आपके हाथों उसका राज्याभिषेक हो जाय, तब तक आप प्रतीक्षा करें।' चण्ड प्रद्योत ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
इस अवसर का लाभ मगावती ने युद्ध की तैयारी के लिए उठाया। उसने इस अवधि में दुर्ग, खाई और प्राचीर बनवाये। उदयन अब तेरह वर्ष का हो गया था । मृगावती उसका राज्याभिषेक करने की तैयारी करने लगी। तभी चरों द्वारा चण्ड प्रद्योत को मगाबती की युद्ध सम्बन्धी तैयारियों का पता लगा । वह क्रोध से भाग बबूला हो गया। उसने विशाल सेना लेकर कीशाम्बी को घेर लिया। मगावती ने नगर के सभी फाटक घन्द करा दियेनी कौशास्त्री में भगवान महावीर का पदार्पण हुमा.1 उनके उपदेश से चण्ड प्रद्योत युद्ध से विरत हो गया। इतना ही नहीं. उसने अपने हाथों से उदयन का राज्याभिषेक किया। इसके पश्चात मगावतो भगवान के सघ में शामिका बन गई।
कुछ वर्ष पश्चात उदयन ने कौशल से चण्ड प्रद्योत को राजकुमारी वासवदत्ता के साथ विवाह किया। उदयन ललित कलानों-विशेषत: वीणावादन में उस युग का सर्वधेष्ठ निपूण व्यक्ति माना जाता था। कितनी ग्य से उसके कोई सन्तान नहीं थी। वह अपना अधिकांश समय धर्माराधना में व्यतीत किया करता था। चार उसने किसी सेवक की उसके अपराध के लिए कड़ी भर्त्सना को। इस अपमान से शुध होकर सेवक प्रतिशोलने की भावना से ग्रवन्ती चला गया और उमरूप मे जैन मुनि बन गया । कुछ दिन पश्चात् वह अपने गुरु के साथ विहार करता हया कौशाम्बी पाया। दोनों मुनि जिनालय में ठहरे । एक दिन उदयन प्रोषधोपवास का नियम लेकर जिनालय
सपना समय धार्मिक अनुष्ठान में व्यतीत करने के लिए ठहा। जब उदयन और गुरु दोनों सोरहे थे, उस मायावी साध ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अवसर उपयुक्त समझा घोर उसने सोते हुए राजा की छरा घोंप कर हत्या कर दी। हत्या करके वह तो भाग गया। जव गुरु की नींद खुली और राजा को मृत पड़ा हुआ देखा तो लोकनिन्दा के भय से उन्होंने उसी छुरे से प्रात्म-हत्या कर ली।
इस प्रकार तथ्यों के प्रकाश में यह सिद्ध होता है कि कौशाम्बी का राजपरिवार भगवान महावीर का कट्टर भक्त था।
दशरथ चेटक ने अपनी एक पुत्री सुप्रभा का विवाह दशार्ण देश के नरेश दशरथ के साथ किया था। इससे यह तो प्रगट ही है कि वह नरेश जैन था और महावीर का भक्त था; किन्तु तत्कालीन राजनोति में उसका क्या योगदान था अथवा राजनैतिक जगत में उसकी क्या स्थिति थी, इतिहास ग्रन्थों से यह ज्ञात नहीं होता।
श्वेताम्बर ग्रन्थों में इस पुत्री का नाम शिबादेवी दिया है और उसका विवाह अवन्ती नरेश चण्ड प्रद्योत के साथ हया बताया है। चण्ड प्रद्योत उस युग का प्रचण्ड और शक्तिशाली नरेश था। कल्पसूत्र में उल्लेख मिलता है कि उसने अपने शौर्य द्वारा चौदह राजानों को अपने आधीन बनाया था। एक बार अवन्ती में भयानक अग्नि का प्रकोप हया, किन्तु शिवादेवी ने अपने शील के माहात्म्य से उसे बुझा दिया था। संभवत: प्रद्योत अपने प्रारम्भिक जीवन में तापसों का अनुयायी था, किन्तु सिन्धु-सौवीर नरेश द्वारा क्षमा प्रदान करने पर वह कट्टर जैन बन गया था। प्रद्योत तो बस्तत: वंश का नाम था, उसका नाम तो महासेन था और अपनी प्रचण्डता के कारण वह चण्ड प्रद्योत कहलाने लगा था। उसने अपने जीवन में दो काम इतने अविवेकपूर्ण किये, जिनके कारण उसे अपयश का भागी
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%. Ancient India, Vol. 1 p. 116 by Tribhuban, L, Shah,