Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 396
________________ भगवान महावीर ३८१ सरण वहां रहा, वह नियमित रूप से भगवान का उपदेश सुनने जाता रहा और जब भगवान का विहार हा तो वह कौशाम्बी तक भगवान के साथ गया । ___ काशी नरेश जितशत्रु ने वाराणसी पधारने पर भगवान की बड़ी भक्ति की थी और राजकुमारी मुण्डिका ने श्राविका के व्रत ग्रहण किये।। भगवान जब कलिंग पधारे तो वहाँ के नरेश जितशत्रु ने बड़ा प्रानन्दोत्सव मनाया और वह कुमारी पर्वत पर भगवान के निकट मुनि-दीक्षा लेकर अन्त में मुक्त हुआ। उसकी पुत्री राजकुमारो यशोदा ने भी चन्दना के निकट प्रायिका के त ग्रहण किये । जब भगवान का विहार पोदनपुर की ओर हुआ, तब वहाँ का राजा विद्रदाज भगवान का भक्त बन गया। भगवान शूरसैन देश में पधारे। मथुरा में भगवान का समघसरण था । वहाँ का राजा उदितोदय भगवान का उपदेश सुनकर उनका भक्त बन गया । काम्पित्य नरेश जय भगवान के पधारने पर उनके निकट निग्रन्थ मुनि बन गया और प्रत्येक बुद्ध हुमा । महावीर का लोकव्यापी प्रभाव-भगवान महावीर के धर्म-विहार और प्रभाव का प्रामाणिक इतिहास मिलता है। प्राचार्य जिनसेन ने 'हरिवंश पुराण' में इस इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है। हरिवंश पुराण में वणित यह इतिहास प्रामाणिक तो है ही, उससे भारत के सभी भागों में भगवान महावीर के अलौकिक प्रभावविस्तार पर भी अधिकृत प्रकाश पड़ता है। उसका सार इस प्रकार है राजा श्रेणिक प्रतिदिन तीर्थकर भगवान की सेवा करता था। वह गौतम गणधर को पाकर उनके उपदेश से सब अनुयोगों में निष्णात हो गया था। उसने राजगृह नगर को जिन मन्दिरों से व्याप्त कर दिया था। राजा के भक्त सामन्त, महामंत्री, पुरोहित तथा प्रजा के अन्य लोगों ने समस्त मगध देश कों जिनमन्दिरों से युक्त कर दिया। वहाँ नगर, ग्राम, घोष, पर्वतों के अग्रभाग, नदियों के तट और वनों के अन्त: प्रदेशों में सर्वत्र जिनमन्दिर हो जिनमंदिर दिखाई देते थे। इस प्रकार वर्धमान जिनेन्द्र ने पूर्वदेश को प्रजा के साथ-साथ मगध देश की प्रजा को प्रबुद्ध कर विशाल मध्यदेश की ओर गमन किया। मध्य देश में धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति होने पर समस्त देशों में धर्म विषयक अज्ञान दूर हो गया। जिस प्रकार भगवान ऋषभदेव ने अनेक देशों में विहार कर उन्हें धर्म से युक्त किया था, उसी प्रकार भगवान महावीर ने भी वैभव के साथ बिहार कर मध्य के काशी, कोशल, कुसन्ध्य, अस्वाष्ट. साल्व, त्रिगर्त, पंचाल, भद्रकार, पटच्चर, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन और वृकार्थक, समुद्र तट के कलिंग, कुरुजांगल, कैकेय, पात्रेय, कम्बोज, वाल्हीक, यवन, सिन्ध, गान्धार, सीवीर, सूर, भीरु, दरोरुक, वाडवान, भरद्वाज और क्वाथतोय तथा उत्तर दिशा के ताण, कार्ण और प्रच्छाल आदि देशों को धर्म से युक्त किया। भगवान महावीर के धर्म बिहार के इस व्यवस्थित और प्रामाणिक इतिहास से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान महावीर ने भारत के अनेक प्रदेशो में बिहार किया था। उन्होंने जहाँ-जहाँ बिहार किया था, वहाँ जन धर्म के मानने वालों की संख्या बहुत हो गई। भगवान के धर्मोपदेश का परिणाम बहमुखी था । सर्वसाधारण के मानस में हिंसा के प्रति संस्कार बद्धमूल हो गये थे, धामिक क्षेत्र में हिसामूलक क्रियाकाण्डों को अभ्युदय प्रौर निधेयस के लिए अनिवार्य आवश्यकता स्वीकार कर लिया गया था, उनके प्रति जनमानस में बितष्णा और क्षोभ उत्पन्न हो गया । लोक मानस में एक अद्भुत उद्वेलन उत्पन्न हो गया। यह एक असाधारण उपलब्धि थी। उस स्थिति को कल्पना करें, जब देश के बहुसंख्यक वर्ग का यह विश्वास था कि हिंसामूलक यज्ञ यागादि से सभी प्रकार की इहलौकिक कामनायें पूर्ण हो जाती हैं । मंत्रों के अधिष्ठाता देव इन्द्र, वरुण, ऋत, अग्नि, वायु आदि पालेभन द्वारा ही प्रसन्न हो सकते हैं । उसका यह विश्वास एक-बारमी ही हिल गया, जब महाबीर को समर्थ वाणो 'सत्वेष, मैत्री' की उद्घोषणा करती हुई सारे देश और विदेशों में गूंज उठी। समस्त जनता के एकमात्र विश्वास को चामत्कारिक ढंग से एक साथ किसी ने परिवर्तित कर दिया हो, संसार में ऐसे उदाहरण प्रायः मिलते नहीं। विश्वास भी वह जो बहसंख्यक समर्थ सम्प्रदाय का हो। जस विश्वास के विरुद्ध उठी आवाज उस सम्प्रदाय के विरुद्ध उठी आवाज मान ली जाती है । किन्तु महावीर ने किसी का विरोध नहीं किया। उन्होंने कोई बात निषेधात्मक अथवा विरोधात्मक

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