Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 408
________________ भगवान महावीर महावीर के बिहार का जो वर्णन श्वेताम्बर भागमों में मिलता है, उसके अनुसार वे चम्पा मैं चातुर्मास पूर्ण करके अम्भिक गांव पहुंचे। वहां से मेकिय, छम्माणि होते हुए मध्यमा पावा पहुंचे। वहाँ से राजगृह गये। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मध्यमा पावा चम्पा पौर राजगह के मध्य में अवस्थित थी। इन विवरणों से यह सिद्ध होता है कि पटना जिले की वर्तमान पावापुरी ही महावीर का निर्वाण स्थान है। वही मध्यमा पाया है। पाया की स्थिति इतनी स्पष्ट है कि जिसमें सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है। किन्तु कुछ वर्षों से कुछ जैनेतर और जैन विद्वान जंन पास्त्रों के उक्त दृष्टिकोपको बिलकुल उपेक्षा रखने और प्रों वणित मल्लों को पावा को ही एक मात्र पाया मान बैठे हैं, जहाँ म. बुद्ध को कर्मारपुत्र चुन्द ने सूकरमहष भोजन में दिया था और जिसे खा कर बुद्ध को रक्तातिसार हो गया और यही रोग उनके लिए सांघातिक सिम हमा । म बुद्ध के साथ घटित इतनी बड़ी घटना के कारण मल्लों की इस पावा को बड़ी स्याति मिली। इस ख्याति और बौद्ध ग्रन्थों से प्रभावित अनेक विद्वानों ने जैन शास्त्रों की उपेक्षा करके महलों की पाषा को ही महावीर का निर्वाण स्थान कहना प्रारम्भ कर दिया। हमें पाश्मये है कि कुछ जैन विद्वान भी उनके दृष्टिकोण से प्रभावित हो गये। विवानों के समक्ष हम कुछ तर्क उपस्थित करते हैं। प्राशा है, वे उन पर विचार करके अपना मत निश्चित करेंगे १. जैन शास्त्रों में किसी स्थान पर महावीर का निर्वाण मल्लों की पावा में नहीं बताया। २. बौद्ध ग्रन्थों में जब-जब पावा में म० बुद्ध की चारिका का वर्णन माया है, सर्वत्र उसको मल्लों की पावा बताया है। किन्तु निगंठ नातपुत्त के कालकवलित होने की जहाँ भी चर्चा पाई है, वहाँ केवल पावा ही दिया है, एक भी स्थान पर मल्लों की पावा नहीं दिया। माखिर क्यों? ३. जैन शास्त्रों में महावीर के निर्वाण प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि उस समय नौ मल्ल राजा और लिच्छवी राजा भगवान के निर्वाणोत्सव में सम्मिलित हुए थे। इस उल्लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर का निर्वाण मल्ल संघ पौर लिच्छवी संघ से बाहर कहीं हुपा था। यदि उनका निर्वाण मल्लों की पावा में हुया होता तो मल्ल राजामों के उल्लेख की पावश्यकता न पड़ती। उल्लेख बाहर वालों का किया जाता है, स्थानीय लोगों का नहीं। ४. जैन शास्त्रों में महावीर के गिर्वाण स्थान का नाम मध्यमा पावा दिया है। यह पावा अन्य दो पावामों के मध्य में थी, इसलिए मध्यमा पाया कहलाती थी। वर्तमान पावापुरी की स्थिति मध्यमा पाषा की बन सकती है। क्योंकि उसके एक प्रोर भंगिजनपद की पावा घी, दूसरी पोर मल्लों की पावा थी। किन्तु सठियांव (मल्लों की पाया) मध्यमा पावा नहीं बन सकती। वह तो एक पोर पड़ जाती है। ५ जैन शास्त्रों में महावीर का जो बिहार-क्रम दिया है, उसके अनुसार मध्यमा पावा चम्पा और राजगही के मध्य में थी। वर्तमान पावापुरी भी चम्पा और राजगृही के मध्य में पड़ती है, मल्लों की पावा नहीं। इन तकों के प्रकाश में पावापुरी ही भगवान महावीर का निर्वाणस्थान सिद्ध होती है। हमें एक बात बहुत स्पष्टतया समझ लेनी चाहिए। महावीर के सम्बन्ध में कोई निर्णय करते समय जैन शास्त्रों को ही प्रमाण स्वरूप मानना है, न कि बौद्ध ग्रन्थों को क्योंकि बौद्ध ग्रन्थों में महावीर के सम्बन्ध में जो वर्णन किया गया है, वह प्रप्रामाणिक, इतिहास विरुद्ध प्रौर साम्प्रदायिक द्वेष से प्रेरित है। उदाहरण के लिए जैसे बुद्ध की प्रशंसा सुनकर मुह से रक्तदमन करना और उसी में नालन्दा में उनकी मृत्यु होना लिखा है, जो कि स्वीकार्य नहीं हो सकता। इसी प्रकार महावीर की मृत्यु के तत्काल बाद दिगम्बर और श्वेताम्बर के रूप में जैनों का संघ-भेद होना और उनका परस्पर विग्रह करना यह सब इतिहासविरुद्ध हैं। साम्प्रदायिक विद्वेष में इससे बड़ा उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता, जन चुन्द द्वारा महावीर की मृत्यु का समाचार सुनकर प्रानन्द इस समाचार को तथागत के लिए भेंट स्वरूप कहते है। हम यहाँ उन संभावनाओं का भी स्पष्टीकरण करना उचित समझते हैं, जो पावापुरी को महावीर का निर्वाण-स्थान मानने में उठ सकती है अथवा उठाई जाती हैं। संभावनाएं निम्नलिखित हो सकती हैं

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