Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 403
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास किन्तु इनके सम्प्रदाय fee दिनों तक चल नहीं पाये, प्रायः इनके साथ ही वे समाप्त हो गए। केवल मंखलि गोशालक द्वारा प्रचारित श्राजीवक सम्प्रदाय और बुद्ध द्वारा स्थापित बोद्ध धर्म ही उनके वाद जीवित रह पाये । आजीवक सम्प्रदाय भी कुछ शताब्दियों तक चला। धीरे-धीरे वह क्षीण होता गया और वह जैन धर्म में विलीन हो गया। इस प्रकार इन तथिकों के सम्प्रदायों में केवल बौद्ध धर्म ही जैन धर्म के साथ-साथ जीवित रह सका । $27 भगवान महावीर का परिनिर्वाण - प्राचार्य वीरसेन विरचित 'जयधवला टीका में भगवान महावीर के निर्वाण के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है २६ वर्ष ५ मास और २० दिन तक ऋषि, मुनि, यति और प्रनगार इन चार प्रकार के मुनियों और १२ गणों अर्थात् समानों के साथ बिहार करने के पश्चात् भगवान महावीर ने पाया नगर में कार्तिक कृष्णा धतुदशी के दिन स्वाति नक्षत्र के रहते हुए रात्रि के समय शेष प्रधाति कर्म रूपी रज की छेदकर निर्वाण प्राप्त किया । आचार्य जिनसेन ने 'हरिवंश पुराण' में भगवान के निर्वाण के सम्बन्ध में कुछ नवीन तथ्यों पर प्रकाश डाला है जो इस प्रकार है भगवान महावीर भी निरन्तर समोर के भव्य समूह को संबोधित कर पाया नगरी पहुँचे और वहाँ के मनोहोचन नामक वन में विराजमान हो गये। जब चतुर्थ काल में तीन वर्ष साढ़े पाठ मास बाको रहे, तब स्वाति नक्षत्र में कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातः काल के समय स्वभाव से ही योग निरोध कर घातिया कर्म-रूपी ईन्धन के समान प्रघातिया कर्मों को भी नष्ट कर बन्धन रहित हो संसार के प्राणियों को सुख उपजाते हुए निरन्तराय तथा विशाल सुख से सहित निर्बन्ध मोक्ष स्थान को प्राप्त हुए। गर्भादि पांच कल्याणकों के महान ग्रधिपति, सिद्धशासन भगवान महावीर के निर्माण महोत्सव के समय चारों निकाय के देवों ने विधिपूर्वक उनके शरीर की पूजा की। उस समय सुरों और असुरों के द्वारा जलाई हुई देदीप्यमान दीपकों की पंक्ति से पावानगरी का प्रकाश सब भोर से जगमगा उठा। उस समय से लेकर भगवान के निर्वाण कल्याण की भक्ति से युक्त संसार के प्राणी इस भारत क्षेत्र में प्रतिवर्ष आदरपूर्वक प्रसिद्ध दीपमालिका के द्वारा भगवान महावीर की पूजा करने के लिए उद्यत रहने लगे । माचार्य गुणभद्रकृत उत्तर पुराण में बताया है कि भगवान के साथ एक हजार मुनि मुक्त हुए, किन्तु मन्य माचायों का मत है कि भगवान एकाकी ही मुक्त हुए । 'कल्पसूत्र' में भगवान महावीर के निर्वाण के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण दिया है, जिसका भाशय इस प्रकार है "भगवान अन्तिम वर्षावास करने के लिए मध्यम पावा नगरी के राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में ठहरे हुए थे | चातुर्मास का चतुर्थ मास और वर्षा ऋतु का सातवा पक्ष चल रहा था अर्थात् कार्तिक कृष्णा श्रमावस्या आई | अन्तिम रात्रि का समय था । उस रात्रि को श्रमण भगवान महावोर काल धर्म को प्राप्त हुए। वे संसार त्याग कर चले गये । जन्म ग्रहण की परम्परा का उच्छेद करके चले गये । उनके जन्म, जरा और मरण के सभी बन्धन नष्ट हो गए, भगवान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये, सब दुःखों का धन्त कर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए । 'महावीर जिस समय काल धर्म को प्राप्त हुए, उस समय चन्द्र नामक द्वितीय संवत्सर चल रहा था । प्रीतिवर्धन मास, नन्दिवर्धन पक्ष, अग्निवेश दिवस (जिसका दूसरा नाम उदसम भी है), देवानन्दा नामक रात्रि (जिसे निरई भी कहते हैं) अर्थ नामक लय सिद्ध नामक स्तोक, नाग नामक करण, सर्वार्थसिद्धि नामक मुहूर्त तथा स्वाति नक्षत्र का योग था । ऐसे समय भगवान काल धर्म को प्राप्त हुए। वे संसार छोड़कर चले गये । उनके सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो गये । १. जयभवला भाग १, पृ० ८१ २. हरिवंश पुराण ६६ । १५-२० १. कल्पसूत्र १२३-१२७ ( यो भ्रमर जैन आगम शोध संस्थान सिवामा (राज० ) से प्रकाशित, पृ० १२५.

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