Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 392
________________ भगवान महावीर और इन सबने भगवान के पास यथा समय जिन दीक्षा लेकर मात्म कल्याण किया । श्वेताम्बर ग्रन्थों में श्रेणिक की अनेक रानियाँ और पुत्र बताये हैं । ग्रन्तगड दशाङ्ग भाग- २ श्रध्याय १३ में बताया है कि श्रेणिक की १३ रानियाँ अपने पति की श्राज्ञा लेकर जैन प्रायिका बन गई। उनके नाम इस प्रकार थे- नन्दा, नन्दमती, नन्दोसरा, नन्दसेना, मरुया, सुमरुया, महामख्या, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना मौर भूतदत्ता । इसी ग्रन्थ के राग ३ अध्याय १० में बताया है कि निम्नलिखित १० रानियों घणिक की मृत्यु के पश्चात जैन साध्वी हो गईं-काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेन कृष्णा और महासेन कृष्णा । وان و भगवती सूत्र, कल्पसूत्र, यादि श्रन्य श्वेताम्बर ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि श्रेणिक की यों तो अनेक रानियाँ थी; किन्तु उनमें मुख्य रानियों में सुनन्दा, धारिणी, चेलना और कोशल देवी के नाम उल्लेखनीय थे । इसी प्रकार इनके पुत्रों में अभयकुमार, मेघकुमार, कुणिक (प्रजातशत्रु), हल्स, विहल्ल, नन्दिषेण मुख्य थे । ये सभी शमियां और पुत्र (अजातशत्रु को छोड़कर) भगवान महावीर के समीप दीक्षित हो गये थे । बौद्ध शास्त्रों में 'महावग्ग' के अनुसार श्रेणिक की ५०० रानियाँ थीं, किन्तु केवल क्षेमा नामक एक रानी के बौद्ध भिक्षुणी बनने का उल्लेख है। I इससे विवरण से ज्ञात होता है कि राजगृह के राजपरिवार पर भगवान महावीर का महान प्रभाव या और उस राज परिवार के सभी स्त्री और पुरुष महावीर के अनुयायी थे ।. वैशाली का राजपरिवार उस काल में वैशाली गणतंय कस्यन्त समृद्ध था कि दृष्टि से मस्त भारत में उसका महत्वपूर्ण स्थान था । वैशाली गणतंत्र के गणप्रमुख का नाम चेटक या । उनके सात पुत्रियाँ और दस पुत्र थे । चेटक के मातापिता का नाम यशोमति और केक था। उनकी पुत्रियों के नाम इस प्रकार थे - प्रियकारिणी (त्रिशला ), सुप्रभा प्रभावती, प्रियावती, (सिप्रादेवी) सुज्येष्ठा, चेलना और चन्दना । दस पुत्रों में एक सिंहभद्र नामक पुत्र था, जो अपनी वीरता धीर योग्यता के कारण वैशाली गणतंत्र की सेना का सेनाध्यक्ष था। इस परिवार का धर्म क्या था, इसका न केवल जैन शास्त्र, बल्कि बौद्ध ग्रन्थ एक ही उत्तर देते हैं कि यह परिवार निर्ग्रन्थों का भक्त था और जैन धर्म का अनुयायी था। जैन शास्त्रों में ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि महाराज चेटक माश्वपत्य धर्म को मानते थे । उनकी प्रतिज्ञा थी कि मैं अपनी पुत्रियों का विवाह जैन के अतिरिक्त ग्रन्थ किसी व्यक्ति के साथ नहीं करूंगा । अपनी इस प्रतिज्ञा का पालन उन्होंने पूर्णतः किया। उन्होंने अपनी बड़ी पुत्री प्रियकारिणी का विवाह कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ के साथ किया, प्रभावती सिन्धु-सौवीर के राजा उदायन के लिए दी, सिप्रादेवी (अपर नाम मृगावती) वत्स नरेश शतानीक के साथ विवाही गई तथा सुप्रभा कहीं-कहीं इसका नाम शिवादेवी भी मिलता है दशार्ण देश के हेमकच्छ के नरेश दशरथ को दी गई। इसका अर्थ यह है कि ये चारों राजा जैन थे और भगवान महावीर के अनुयायी थे । चूंकि श्रेणिक उस समय बौद्ध धर्म का अनुयायी था, अतः महाराज चेटक ने चेलना का विवाह उसके साथ नहीं किया। बाद में श्रेणिक के पुत्र अभय कुमार की योजना से चेलना गुप्तरीति से गुप्त मार्ग द्वारा राजगृही पहुंची और उसका विवाह श्रेणिक के साथ हो गया। किन्तु चेलना की बुद्धिमानी से श्रेणिक जैन धर्मानुयायी हो गया और भगवान महावीर का भक्त बन गया। शेष दो पुत्रियाँ ज्येष्ठा और चन्दना भगवान के पास दीक्षित हो गई। सिद्धार्थ सिद्धार्थ कुण्डग्राम के गणप्रमुख थे और राजा की उपाधि से विभूषित थे। उनके पिता का नाम सर्वार्थ मोर माता का नाम सुप्रभा था। सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला थी । यह परिवार महावीर के जन्म से पूर्व पार्श्वपत्य धर्मका अनुयायी था, किन्तु महावीर भगवान की केवल ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् यह उनका अनुयायी बन गया। जब महावीर का जन्म हुआ था, उस समय उनके दादा-दोदो जीवित थे, इस प्रकार का कोई उल्लेख देखने में नहीं

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