Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ पविशतितम अध्याय भगवान पार्श्वनाथ पूर्व भव-जैन ग्रन्थों में भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व के १० जन्मों का वर्णन मिलता है। उनमें परस्पर में कहीं-कहीं भेद है, परन्तु वह भेद साधारण हो है और वह नगण्य है। यहाँ उस भेद का भी संकेत किया जायगा, जिससे सभी जैनाचार्यों के दृष्टिकोण का परिचय मिल सके। प्रथम भव-जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र में सुरम्य नामक एक बड़ा देश था। उसमें पोदनपुर नामक विशाल नगर था। उस नगर का शासक अरविन्द नामक नरेश था जो प्रजावल्लभ था । उसके नगर में विश्वभूति नामक ब्राह्मण और उसकी पत्नी अनुन्धरी रहते थे। विश्वभति राजपुरोहित थे। उनके दो पुत्र थे-कमठ और मरुभति । कमठ अत्यन्त नीच प्रकृति का था, जबकि मरुभूति अत्यन्त धार्मिक वृत्ति वाला था। कमठ की स्त्री का नाम वरुणा और मरुभूति की स्त्री का नाम वसुन्धरी था। वरुणा सदाचारिणी और वसुन्धरी दुराचारिणी थी। एक दिन विश्वभूति ने अपना पद अपने पुत्र को देकर और घरवार छोड़कर जिमदीक्षा धारण करली । अनुन्धरी ने भी प्रव्रज्या धारण करली । राजा अरविन्द को राजपुरोहित की दीक्षा का समाचार ज्ञात हुआ। उसने राजपुरोहित के दोनों पुत्रों को राजसभा में बुलाया। उनमें कनिष्ठ मरुभूति को विशेष सज्जन समझकर पुरोहित पद पर प्रतिष्टित किया। कुछ समय पश्चात् राजा युद्ध के निमित्त गया । मरुभूति को भी उसके साथ जाना पड़ा । कमठ ने इस अवधि में मरुभूति की पत्नी वसुन्धरी को देखा। देखते ही वह उसके ऊपर प्रासक्त हो गया । यही स्थिति वसुन्धरी की हुई और दोनों में प्रेम हो गया । वे विषयलम्पटी काम-सेवन करने लगे। कुछ समय पश्चात् राजा सेना सहित वापिस लौट पाया, मरुभूति भी लौट आया। वह प्राकर कमठ से प्रेमपूर्वक मिला और अपनी स्त्री के पास आकर विदेश से लाया हमा धन उसे प्रेम से सोंप दिया। एक दिन मरुभूति को उसकी भावज वरुणा ने अपने पति कमठ और अपनी देवरानी वसुन्धरी को प्रणयलीला की बात बताई। पहले तो मरुभूति को विश्वास नहीं हुआ, किन्तु जब रात्रि में उसने स्वयं अपनी आँखों से दोनों को कीड़ारत देख लिया तो वह क्रोध से जलने लगा। उसने तत्काल राजभवन में जाकर राजा से न्याय की याचना की। राजा ने अभियोग सुनकर सैनिकों को कमठ को गिरफ्तार करने की आज्ञा दी। जब कमठ बन्दी बनाकर वहाँ लाया गया तो उसका मुख काला करके और गधे पर बैठाकर नगर से निर्वासित कर दिया। - कुछ समय पश्चात् मरुभूति अपने भाई कमठ की याद में बेचैन हो गया। उसने राजा से प्रार्थना की -'देव ! मैंने क्रोधवश उस समय अपने भाई को घर से निकाल दिया था, किन्तु मैं अब 'उसे घर वापिस लाने की आपसे अनुमति चाहता हूँ। राजा ने उसे बहुत समझाया किन्तु वह माना नहीं, अपने भाई को ढूंढने चल दिया। वह नगरों, वनों और पर्वतों में भाई की तलाश में भटकता फिरा । इस तरह घूमते हुए उसे सिन्धुतट पर पंचाग्नि तप से कृशकाय कमठ दिखाई पड़ा । वह दौड़ कर रोते हुए उसके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा-याचना करता हुया घर वापिस चलने की प्रार्थना करने लगा। किन्तु दुष्ट कमठ उसे देखते ही क्रुद्ध हो गया और उसने एक भारी पत्थर उठाकर मरुभूति के सिर पर दे मारा। इस प्रकार उसने कई बार पत्थर उठा-उठाकर मारा । पोड़ी देर में मरुभूति का प्राणान्त हो गया। ३३० -

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412