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चन धर्म का प्राचीन इतिहास
में यज्ञों का क्या रूप था। इस विवरण से यह भी ज्ञात हो सकेगा कि यज्ञों के रूप का किस प्रकार ऋमिक विकास हुआ।
प्राचीन काल में संभवतः उस काल में जब वैदिक आर्य भारत में आये थे उससे पूर्व काल में-भारत में ज्ञान यज्ञ का प्रचार था। इस बात का समर्थन वेदों से भी होता है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में इसके समर्थक अनेक मंत्र पाये हैं।
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ॥ तेहनाकं महिमानः स चन्त यज्ञप्रवे साध्या सन्ति देवाः ॥
-ऋग्वेद मं0 स. १६४/५०, अथर्ववेद कां० ७ सू०.५/१ अर्थात् पूर्व समय में देवों ने ज्ञान से यज्ञ किया क्योंकि प्राचीन समय का यही धर्म था। उस ज्ञान-यज्ञ की महिमा स्वर्ग में जहाँ पहले साधारण देव रहते थे पहुँची।
अथर्ववेद में आगे लिखा है-वह ज्ञान यज्ञ यहाँ (भारत में) इतना उन्नत हुना कि वह देवताओं का अधिपति बन गया। इसके पश्चात् यहाँ
यत पुरुषेण हविषा यज्ञ देवा प्रतन्वत ।
अस्तिन तस्मादो जीयो यद विदव्येने जिरे॥४॥ -जप यहाँ देवों ने हवि रूप द्रव्य यज्ञ फैजाया तो भी यहाँ ज्ञान यज्ञ ही मुख्य था। परन्तु हवि यज्ञ के अर्थ मूर्ख देवों ने कुछ और ही समझ लिये । इसलिये
मुग्धा वा उत शुनाथ जन्तोत गोरेङ्ग पुरुषायजन्त ।
य इमं यज्ञं मनसाचिकेत प्राणो वोचस्तमिहेह बयः || ५ ॥ -उन्होंने पशुओं से यज्ञ करना प्रारम्भ किया। यहीं तक नहीं, अपितु गौ के अंगों से भी यज्ञ करने लगे। यजुर्वेद प्र० ३१ मं० १४ और १५ तथा उसका महीधर भाष्य भी इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है
'यशन यज्ञमयजन्त देवाः।।' इस मंत्र का भाष्य करते हुए भाष्यकार श्री महीधर लिखते हैं--
'यज्ञन मानसेन संकल्पेन यान यज्ञ यज्ञस्वरूपं प्रजापतिमयजन्त।' अर्थात् देवों ने मानस संकल्प रूप यज्ञ से यज्ञस्वरूप प्रजापति की पूजा की।
'तं यज्ञहिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमप्रतः।
तेन देवा पयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ।। यजु०म० ३१ मं०६ ॥ इसका महीधर भाष्य-यज्ञं यज्ञ साधनभूतं तं पुरुषं वहिषि मानसे यज्ञे (प्रौक्षत्) प्रीक्षितवन्तः । तेन पुरुषरूपेण यज्ञेन मानस यागं निष्पादितवन्तः के ले देवाः, ये साध्याः सृष्टि साधन योग्याः प्रजापति प्रभृतयः । ये च तदनुकूला: ऋषयः ।
अर्थात् यश साधनभूत पुरुष रूपी यज्ञ से देवों ने मानस यज्ञ निष्पन्न किया। वे देव प्रजापति आदि तथा उनके अनुकूल ऋषि प्रादि थे।
गीता में भी शान योग की प्रशंसा करते हुए कहा है कि ज्ञान योग से सम्पूर्ण कर्मों का विनाश हो जाता है और ज्ञानयोग के समान अन्य कोई योग नहीं है।
भानाग्नि सर्वकर्माणि भस्मसात कुठले तया ॥४1 ३७
नहि जानेन सदशं पक्षिमिह बिते ॥४। म उपयुक्त विवरण पढ़कर यह निष्कर्ष निकलता है कि वैदिक मार्यों से पहले भारत में ज्ञान यज्ञ का प्रचार 'था। वैदिक आमों ने यहां माने पर द्रव्य यज्ञ फैलाया। अपने प्रारम्भिक काल में यह द्रव्य धीरे-धीरेहवि का प्रयं बदल कर उन्होंने पशुओं से यज्ञ करना प्रारम्भ कर दिया। फिर तो यज्ञों में हिंसा का विस्तार बांध तोड़कर बढ़ता ही गया और एक समय ऐसा भी प्राया, जब गोमेष, प्रश्वमेध प्रादि से बढ़कर नरमेध