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महाभारत युद्ध
जिनालयों में दर्शन-पूजन करते थे । वह स्थान उन्हें इतना रुचिकर लगा कि वे वहाँ ११ वर्ष तक ठहरे।
पाण्डव विराट नगर में वहाँ से वे चलकर विराटनगर पहुँचे। वहीं विराट नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सुदर्शना था। पांडवों और द्रौपदी ने वेष बदल कर विराट के यहां नौकरी करती । द्रौपदी को संरन्ध्री का काम मिला। वह रानी के शरीर में तेल मर्दन और शृंगार का कार्य करती थी। उन्हीं दिनों रानी सुदर्शना का सहोदर कीचक अपनी बहन से मिलने आया । कीचक बड़ा बलवान, दुष्ट और क्रूरकर्मा था।
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एक दिन उसने द्रौपदी को देख लिया। देखते ही वह उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गया। वह नाना उपायों से द्रौपदी को श्राकर्षित करने का प्रयत्न करने लगा, किन्तु द्रौपदी ने उसकी ओर एक बार देखा तक नहीं । जब उसकी चेष्टाय सीमा का अतिक्रमण करने लगी, तब एक दिन अवसर पाकर द्रोपदी ने भीमसेन ने उसकी शिकायत कर दी। सुनते ही भीमर्सन क्रोध से उबल पड़ा। उसने द्रौपदी को उपाय बता दिया, जिसके अनुसार द्रौपदी ने कीचक को सायंकाल के समय एकान्त स्थान में मिलने का संकेत कर दिया । यथासमय कीचक उस स्थान पर पहुँचा । द्रौपदी का वेष धारण करके भीमसेन भी उस अन्धकारपूर्ण मिलन-स्थान पर जा पहुँचा । काम विकीचक ज्यों ही आलिंगन के लिए आगे बढ़ा. भीमसेन ने कीचक के गले में दोनों भुजाये डाल कर ऐसा मालिंगन किया कि कीचक भूमि पर जा गिरा। भीम ने उसकी छाती पर चढ़कर कस कर मुष्टिका प्रहार किये, जिससे उसका अंग-अंग चूर-चूर हो गया। इस प्रकार उसकी परस्त्री विषयक साकांक्षा का पूर्णकर दयालु भीमसेन ने 'जा पापी तुझे प्राज छोड़ देता हूं यह कहकर छोड़ दिया। भयंकर रूप से दण्डित और अपमानित होने से कीचक को वैराग्य हो गया । उसने मुनि दीक्षा लेली । मुनि बनकर कीचक घोर तप करते लगे और निरन्तर ग्रात्मा की निर्मलता बढ़ाते रहे। आयु के अन्त में समस्त कर्मों का नाश करके वे जन्म-मरण से मुक्त हो गये। जब कीचक के सौ भाइयों को कोचक की दुर्दशा और अपमान का समाचार ज्ञात हुआ तो वे लोग वहाँ श्राये और सैरन्ध्री को ही इसका कारण समझ कर उसे एक जलती हुई चिता में डालने का उपक्रम करने लगे । भीम ने वहाँ पहुँचकर उन सबको गमघाम पहुँचा दिया |
दुर्योधन निश्चिन्त नहीं बैठा था । उसे अपने विश्वस्त वरों द्वारा समाचार प्राप्त हुआ कि एक ही व्यक्ति ने कीचक के महाबलवान सौ भाइयों का वध कर दिया है। इस समाचार से उसे सन्देह हो गया कि हो न हो, यह कार्य भीम ने किया है। फिर भी उसने अपने सन्देह की निवृत्ति के लिए एक उपाय किया। उसने एक सेना विराट नगर की ओर भेजी। सेना ने विराट नगर के बाहर राजा विराट की चरती हुई गायों को घेर लिया और उन्हें हॉक कर ले जाने लगी। रोते चिल्लाते ग्वालों ने आकर यह समाचार राजा को दिया। विराट ने तत्काल अपनी सेना भेज दी। यह समाचार अर्जुन के कानों में भी पड़ा। वह विराट को पुत्र उत्तरा को नृत्य विद्या सिखाने के कार्य में नियुक्त था। उसने महाराज से एक रथ और उपयुक्त शस्त्रास्त्र देने की प्रार्थना की। राजा ने वैसा ही किया । अर्जुन रथ में प्रारूढ़ होकर युद्ध स्थल की भोर रवाना हुआ। मार्ग में उसने एक शमी वृक्ष पर छिपाये हुए अपने गाण्डीव धनुष और शस्त्रास्त्रों को उतारा और जाकर कौरव सेना पर भयंकर वेग से आक्रमण कर दिया। नकुल और सहदेव दोनों भ्राता तलवार में पटु थे। वे भी अपने शस्त्रों से सज्जित होकर मोर्चे पर पहुंचे। उन तीनों भाइयों के हस्तलाघव और वीरता के आगे कौरव सेना युद्ध क्षेत्र और गायों को छोड़कर प्राण बचाकर भागी ।
दुर्योधन को सन्देह का कोई कारण शेष नहीं रहा। उसे विश्वास हो गया कि पाण्डव विराट नगर में छद्मवेष में अज्ञातवास का काल यापन कर रहे हैं। किन्तु अज्ञातवास का काल समाप्त हो गया था । अतः पाण्डव पुनः हस्तिनापुर को लौट गये और वहाँ राज्य शासन करने लगे ।
किन्तु कौरव शान्त रहने वाले नहीं थे । उन्होंने यह कहना प्रारम्भ कर दिया कि पाण्डव अज्ञातवास के निश्चित समय से पूर्व श्रा गये हैं। अतः उन्हें बारह वर्ष का अज्ञातवास पुनः स्वीकार करना चाहिए। सन्धि की यह शर्त बहुत स्पष्ट है। कौरवों की ये अनर्गल बातें सुनकर भीम आदि चारों भाई उत्तेजित हो जाते, किन्तु
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