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भगवान नेमिनाथ : एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व
११॥
१ समुद्रविजय, २ प्रक्षोभ्य, ३ स्तिमितसागर, ४ हिमवान, ५ विजय, ६ प्रचल, ७ धारण, = पूरण, 8 अभिचन्द्र और १० वसुदेव। दो पुत्रियाँ हुई- कुन्ती और माद्री समुद्रविजय के नेमिनाथ अथवा अरिष्टनेमि हुए. जो बाईसवें तीर्थंकर थे । वसुदेव के बलराम और श्रीकृष्ण हुए जो नीवें बलभद्र और नारायण थे। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण चचेरे भाई थे ।
जैन परम्परा के समान हिन्दू पुराण 'हरिवंश' के अनुसार भी श्रीकृष्ण और परिष्टनेमि चचेरे भाई थे । इन दोनों के परदादा युधाजित और देवमीदुष दोनों सहोदर थे ।
हिन्दू पुराणों में हरिपुराण
के विरित नेमि जिन का उल्लेख मिलता है और उन्हें मुक्तिमार्ग का कारण बताया है। रेवतात्रौ जिनो ने मिथुं गा विविमलाचले | ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥ प्रभास खण्ड में शिव और नेमिनाथ को एक माना "भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तेनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतां गतः || पद्मासनः समासीनः श्याममूर्तिदिगम्बरः । नेमिनाथः शिवोऽयंवं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशकः । दर्शनात् स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदः ॥
स्कन्द पुराण
के
पुराण में रेवत ( गिरसार) पर्वत पर वह उल्लेख इस प्रकार है-
। सन्दर्भ इस प्रकार है
प्रर्थात् जन्म के अन्तिम भाग में वामन ने तप किया। उस तप के कारण शिव ने वामन को दर्शन दिया । वे शिव पद्मासन से स्थित थे । श्याम वर्ण थे और दिगम्बर थे। वामन ने उन शिव का नाम नेमिनाथ रक्खा । ये नेमिनाथ इस घोर कलिकाल में सब पापों के नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्शमात्र से करोड़ों यज्ञों का फल होता है ।
यहाँ शिव को पद्मासनासीन, श्याम वर्ण और दिगम्बर बताया है मीर उनको नेमिनाथ नाम दिया है । जैन परम्परा में नेमिनाथ कृष्ण वर्ण, पद्मासनासीन और दिगंबर माने गये हैं। उनकी मूर्तियों में ये तीन विशेषतायें होती हैं। जबकि शिव वस्तुतः कृष्ण वर्ण के नहीं थे। हिन्दू पुराणों की एक विशेष शैली है। वे वैदिकेतर महापुरुषों को शिव या विष्णु के अवतार के रूप में चित्रित करते हैं। उन्होंने ऋषभदेव को विष्णु के अवतार के रूप में चित्रित किया है। इसी प्रकार नेमिनाथ को शिव के रूप में लिखा है ।
हिन्दू पुराणों में शौरिपुर के साथ यादवों का कोई संबन्ध स्वीकार नहीं किया । किन्तु महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ में विष्णुसहस्र नाम में दो स्थानों पर 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' पद प्राया है। यथा
'प्रशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ॥५०॥
कालनेमिनिहा वीरः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ॥८२॥
इसमें उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें श्रीकृष्ण को शौरि लिखा है । श्रागरा से ४० मील दूर शौरीपुर नामक स्थान है । जैन साहित्य में नेमिनाथ का जन्म इसी शौरीपुर में माना गया है। यादवों की मन्धकवृष्णि शाखा की राजधानी यही नगरी थी। यहीं पर नेमिनाथ और श्रीकृष्ण के पिता रहते थे । हिन्दू 'हरिवंश पुराण' में भी श्रीकृष्ण को एक स्थान पर शौरि लिखा है । यथा
'वसुदेवाच्च बेवक्यां जज्ञे शौरिर्महायशाः ||७|| महाभारत में तो बसुदेव के विशेषण के रूप में शौरि पद प्रयुक्त हुआ है । यथा--- शूरस्य शौरिनुं वरो वसुदेवो महायशाः ॥७॥
- हरिवंश पुराण पर्व १ अध्याय ३५
f
- महाभारत, द्रोणपर्व, श्रध्याय १४४