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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
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महाराज यदु के सहस्रद, पयोद, क्रोष्टा, नील और मंजिक नामक देवकुमारों के सुल्य पांच पुत्र हुए। कोष्टा की माद्री नाम की दूसरी रानी से युधाजित और देवमीढुष नामक दो पुत्र हुए । युधाजित के वृष्णि और प्रन्धक नामक दो पुत्र हुए। वृष्णि के दो पुत्र हुए-स्वफल्क और चित्रक। स्वफल्क के अक्रूर हुआ 1 चित्रक क बारह पुत्र हुए जिनके नाम इस प्रकार थे:--
चित्रकस्याभवन् पुत्राः पृविपयुरेष छ। प्रश्वग्रीयोऽवयवाहश्च सूपावकगवेषणी ॥१५॥ परिष्टनेमिरश्वश्च सुधर्माधर्मभूसथा। सुबाहुबहुबाहुश्च श्रविष्ठाश्रवणे स्त्रियौ ॥१६॥
-हरिवंश पु०, पर्व १, अध्याय ३४ चित्रक के पृथ, विपथ, भश्वग्रीव, पश्ववाह, सपावक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुधर्मा, धर्मभृत, सुवाह और बहुबाहु नामक बारह पुत्र और विष्ठा एवं श्रवणा नाम की दो पुत्रियां हुई।
यहाँ चित्रक के एक पुत्र का नाम अरिष्टनेमि दिया है। हरिवंश पुराण में श्रीकृष्ण की वंश-परम्परा इस प्रकार दी है
क्रोष्टा के दूसरे पुत्र देवमीढुष के शुर, शूर के दस पुत्र और पाच पुत्रियां हुई । पुत्रों के नाम इस प्रकार धे-वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, पनावृष्टि, कनवक, वत्सवान्, गुजिम, श्याम, शमीक और गण्डष । पुत्रियों के नाम ये थे---पृथकीति, पृथा, श्रुतदेवा, श्रुतश्रया मोर राजाधिदेवी
-हरिवंश पर्व १,५०३४, श्लोक १७-२३ हरिवंश पुराण पर्व २ अध्याय ३७ और ३८ में एक दूसरी वंश-परम्परा दी है जो इस प्रकार है
इक्ष्वाकु वंश में हर्यश्व हुआ । उसकी रानी मधुमती से यदु नामक पुत्र हुमा । यदु के पांच पुत्र हुए-~-मुचकुन्द, माधव, सारस, हरित और पार्थिव। माधव से सत्वत, सत्वत से भीम, भीम से अन्धक, अन्षक से रैवत, रैवत से विश्वगर्भ, विश्वगर्भ की तीन स्त्रियों से चार पुत्र हुए--वसु, वभ्र, सुषेण और सभाक्ष । वसु से वसुदेव पौर वसुदेव से श्रीकृष्ण हुए।
हरिवंश पुराण के समान महाभारत में भी यदुवंश की दो परम्परायें दी गई हैं
प्रथम परम्परा के अनुसार बुध से पुरुरव, पुरुरव से प्रायु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति, ययाति से यदु, यदु से कोष्टा, कोष्टा से वृजिनिवान्, वृजिनिवान् से उषंगु, उषंगु से चित्ररथ, चित्ररथ का छोटा पुत्र शूर, शूर से वसुदेव और वसुदेय से चतुर्भुजाधारी श्रीकृष्ण हुए।
-महाभारत, अनुशासन पर्व, अ० १४७ श्लोक २७-३२ महाभारत की द्वितीय परम्परा के अनुसार ययाति की रानी देवयानी से यदु हआ। उसके वंश में देवभीड हुना । देवमीट से शूर, शूर से शौरि वसुदेव हुए ।
-महाभारत, द्रोणपर्व, प. १४४, श्लोक ६-७ इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दू पुराणों में यदुवंश की परम्परा के सम्बन्ध में अनेक मत प्राप्त होते हैं। काल के लम्बे अन्तराल ने यदु वंश परम्परा को विस्मृति के कुहासे में ढंक दिया। जिन ऋषियों ने जैसा सना, वैसा लिख दिया।
दूसरी मोर जैन परम्परा में यदु-वंश को एक ही परम्परा उपलब्ध होती है । दिगम्बर और श्वेताम्बर प्राचार्यों की अपनी-अपनी निरवच्छिन्न परम्परा रही है। इसी कारण दोनों ही सम्प्रदायों में यदु-वंश-परम्परा में एकरूपता मोर समानता मिलती है । जैन परम्परा के अनुसार यदुवंश परम्परा इस मांति है
हरिवश में यदु नामक प्रतापी राजा हुप्रा । इसी से यदुवंश चला । यदु से नरपति, नरपति के दो पुत्र हए-शर और सुदीर । सुवीर मथुरा में शासन करने लगा। शूर ने कुशद्य देश में शौयंपुर नगर बसाया और वहीं शासन करने लगा । शूर के अन्धकवृष्णि और सुवीर के भोजकवृष्णि पुत्र हुआ । अन्धकवृष्णि के १० पुत्र हुए