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बलराम की प्रव्रज्या
उधर जरत्कुमार श्रीकृष्ण के आदेशानुसार पाण्डवों की षिष्ठिर ने उससे स्वामी की कुशल वार्ता पूछी। जरत्कुमार ने अपने प्रमाद से श्रीकृष्ण के निधन के करुण समाचार सुनाये और हुई कौस्तुभमणि दिखाई । ये हृदय विदारक समाचार सुनते ही पाण्डव और उनकी रानियाँ, जरत्कुमार और उपस्थित सभी जन रुदन करने लगे। जब सदन का वेग कम हुआ, तो पाण्डव, माता कुन्ती, द्रोपदी यादि रानियाँ जरत्कुमार को आगे कर सेना के साथ दुःख से पीड़ित बलदेव को देखने के लिये चल दिये। कुछ दिनों में वे उसी वन में पहुँचे । वहीं उन्हें बलदेव दिखाई पड़े । वं उस समय श्रीकृष्ण के मृत शरीर को उबटन लगाकर उसका शृङ्गार कर रहे थे। यह देखकर पाण्डव शोक से अधीर होकर उनसे लिपट गये और रोने लगे । तब माता कुन्ती ने और पाण्डवों ने बलदेव से श्रीकृष्ण का दाह संस्कार करने की प्रार्थना की। किन्तु बलदेव यह सुनते ही ग्राग बबूला हो गये। वे प्रलाप करते हुए श्रीकृष्ण के निष्प्राण शरीर को गोद में लेकर निरुद्देश्य चल दिये। किन्तु पाण्डवों ने उनका साथ नहीं छोड़ा, वे भी उनके पीछे-पीछे चलते रहे ।
बलदेव का भाई सिद्धार्थ, जो सारथी था, मरकर स्वर्ग में देव हुआ था तथा जिससे दीक्षा लेने के समय बलदेव ने यह वचन ले लिया था कि यदि मैं मोहग्रस्त हो जाऊँ तो तुम मुझे उपदेश देकर मागच्युत होने से बचालोगे, वह देव बलदेव की इस मोहान्ध अवस्था को देखकर वहाँ थाया। वह रूप बदलकर एक रथ में बैठकर बलदेव के सामने आया । रथ पर्यंत के विषम मार्ग पर तो टूटा नहीं, किन्तु समतल भूमि में चलते ही टूट गया। वह रथ hit ठीक कर रहा था, किन्तु वह ठीक ही नहीं होता था । यह देखकर बलदेव बोले- 'भद्र ! तेरा रथ पर्वत के ऊबड़ खावड़ मार्ग पर टूटा नहीं, किन्तु समतल मार्ग में टूट गया, यह बड़ा आश्चर्य है । अब यह ठीक नहीं हो सकता, इसे ठीक करना व्यर्थ है । देव ने बलदेव को आश्चर्य मुद्रा में देखा और बोला - महाभारत युद्ध में जिन महारथी कृष्ण की बाल बांका नहीं हुआ, वे जरत्कुमार के एक साधारण बाण से भूमि पर गिर पड़े। अब इस जन्म में उनका फिर से उठना क्या संभव है ?
बलदेव उसकी बात की उपेक्षा करके आगे बढ़ गये । श्रागे जाने पर उन्होंने देखा -- एक व्यक्ति शिलातल पर कमलिनी उगाने का प्रयत्न कर रहा है। यह देखकर बलदेव बोले- 'क्यों भाई ! क्या शिलातल पर भी कमलिनी उग सकती है ? देव जैसे इस प्रश्न के लिये तैयार ही बैठा था - 'आप ठीक कहते हैं, पाषाण के ऊपर तो कमलिनी नहीं उग सकती है किन्तु निर्जीव शरीर में कृष्ण पुनः जीवित हो उठेंगे ?'
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सभा में पहुँचा और अपना परिचय दिया। तब शोकोछ्वसित अवरुद्ध कण्ठ से द्वारका दाह तथा वास दिलाने के लिये उसने श्रीकृष्ण की दी
बलदेव आगे बढ़े तो क्या देखते हैं कि एक मूखं व्यक्ति सूखे वृक्ष को सींच रहा है। बलदेव से नहीं रहा गया, वे पूछ ही बैठे क्यों भाई ! इस सूखे वृक्ष को सींचने से क्या लाभ है, यह क्या पुनः हरा हो जायगा ? देव ने उत्तर दिया- 'मेरा वृक्ष सींचने से तो हरा नहीं होगा, किन्तु आपके निर्जीव कृष्ण स्नान-भोजनादि कराने से प्रवश्य जीवित 'उठेंगे।' बलदेव 'उह' करके भागे चल दिये ।
उन्होंने देखा - 'एक मनुष्यं मृत बेल को घास पानी दे रहा है। उन्होंने सोचा - दुनिया में मूर्खों की कमी नहीं है। वे कहने लगे-अरे भोले मानस ! इस मृतक को घास पानी देने से क्या लाभ है ? यह सुनते ही वह मनुष्य तन कर खड़ा हो गया और बोला- दूसरों को उपदेश देने वाले संसार में बहुत हैं, किन्तु स्वयं उस उपदेश पर अमल करने वाले कम ही मिलते हैं। मेरा मृतक बैल तो दाना-पानी नहीं खा सकता, किन्तु प्रापके मृतक कृष्ण प्रवश्य खाना-पानी खा सकते हैं। क्या यही आपका विवेक है ?' यह सुनते ही बलदेव के अन्तर में एक झटका सा लगा और प्रकाश की एक ज्योति कोंध गई। वे बोले-'भद्र ! श्राप ठीक कह रहे हैं। मैं अब तक मोह में अन्धा हो रहा था। कृष्ण का शरीर तो सचमुच ही प्राणरहित हो गया है।' देव बोला— जो कुछ भी हुआ, भगवान नेमीश्वर पहले ही सब कुछ बता चुके हैं । किन्तु सब कुछ जानते हुए भी आप जैसे विवेकी महापुरुष ने छह माह व्यर्थ ही खो दिये । संयोग वियोगपरिणामी है। जन्म में मरण की विभीषिका छिपी हुई है, सुख के फूल दुःख के कांटों में बिधे हुए हैं। केवल मोक्ष-सुख ही अविनाशी है। उसी को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये। इस प्रकार कहकर देव ने अपने वास्तविक रूप में प्रगट होकर अपना परिचय दिया। बलदेव ने जरत्कुमार और पाण्डवों की सहायता से तुङ्गीगिरि