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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास रख दिया था। वास्तव में मैं इसकी माता नहीं हूँ। वह मंजूषा यह है।' यह कहकर उसने मंजूषा सम्राट् को देदो । जरासन्ध ने मंजूषा खोलकर देखो तो उसमें एक मुद्रिका तथा लेख मिला । लेख में लिखा था-यह राजा उनसन पौर रानी पद्मावती का पुत्र है। जब यह गर्भ में था, तभी से यह उग्र था। अत: अनिष्टकारी समझकर उसे स्याग दिया है।
जरासन्ध को अब कोई सन्देह नहीं रहा कि वह राजपुत्र है। उसने अपनी पुत्रो जीवद्यशा का विवाह प्रसन्नतापूर्वक कंस के साथ कर दिया। कंस को अपने पिता के ऊपर अत्यन्त कोध पाया। प्रतिशोध लेने का संकल्प करके उसने जरासन्ध से मथुरा का राज्य मांगा। जरासन्ध ने उसे स्वीकार कर लिया । तब का विशाल सेना लेकर मयरा पाया और अपने पिता उग्रसन से युद्ध करके उन्हें कौशल से बांध लिया। इतना हो नहीं; उसने अपने पिता को नगर के मुख्य द्वार के ऊपर कारागार में डाल दिया। अब वह मथुरा का वासक हो गया।
वसुदेव-वेवकी का विवाह कंस अपने विद्या-गुरु वसुदेव के उपकारों को भूला नहीं था। उसने उन्हें अत्यन्त प्राग्रह और सम्मान के साथ मथुरा बुलाया और गुरु-दक्षिणा के रूप में अपनी बहन देवकी का विवाह उनके साथ कर दिया। वसुदेव उसके आग्रह को मानकर वहीं पर रहने लगे।
एक दिन प्रतिमुक्तक नामक एक निर्ग्रन्थ मुनि पाहार के समय राज मन्दिर पधारे। कंस-पस्नी जीवद्यशा ने उन्हें देवकी का अानन्द-वस्त्र दिखाकर उनसे उपहास किया। इससे मुनि को क्षोभ प्रा गया। उन्होंने क्रोध में कहा-'मूर्ख ! तू शोक के स्थान में प्रानन्द मान रही है। इसी देवको के गर्भ से उत्पन्न बालक तेरे पति और पिता का संहार करेगा।' यह कहकर बे वहाँ से विहार कर गये।
इस भविष्यवाणी को सुनकर जीवद्यशा भय से कांपने लगी। उसे विश्वास था कि निर्ग्रन्थ मूनि के वचन कभी मिथ्या नहीं होते । बह पति के पास पहुंची और उसने सब समाचार उसे बता दिये । धूर्त कंस ने विचार किया और बह बसुदेव के पास पहुंचा 1 उसने उन्हें प्रणाम करके बड़ी विनम्रता से धरोहर स्वरूप रखा हुया वरदान देने की प्रार्थना की। वह बोला-'आर्य ! आपने मुझे वरदान देने का वचन दिया था। मैं वह वर मांगता हूँ कि बहन देवको प्रसूति के समय मेरे घर पर रहा करे। वसुदेव को इस समाचार का कुछ ज्ञान नहीं था, अतः उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।
किन्तु उन्हें शीघ्र ही कंस को दुरभिसन्धि का पता चल गया । तब उन्हें बड़ी चिन्ता हुई। वे देवकी को लेकर वन में अतिमुक्तक मुनिराज के पास गये। मुनिराज को नमस्कार करके दोनों उनके पास बैठ गये। मुनिराज ने उन्हें प्राशीवाद दिया। तब वसूदेव ने उनसे पूछा-भगवन ! मेरा पूत्र इस पापो कंस का संहार कैसे करेगा, यह मैं मापसे जानना चाहता हूँ।' अतिमुक्तक मुनिराज अवधिज्ञान के धारक थे। वे बोले-'राजन् ! इस देवकी का सातवां पुत्र शङ्ख, चक्र, गदा और धनुष का धारक नारायण होगा। वह कंस और जरासन्ध आदि शत्रुओं का वध कर अर्धचक्रोश्वर बनेगा। शेष छहों पुत्र चरम शरोरी होंगे। रोहिणी का पुत्र रामभद्र बलभद्र है। तुम्हें किसी प्रकार को चिन्ता करने को आवश्यकता नहीं है।
बसुदेव और देवकी सन्तुष्ट मन से लौट गये । वसुदेव च कि वचन दे चुके थे। अतः उन्होंने कंस के साथ मित्रता तो रक्खो, किन्तु उसमें उपेक्षा आ गई 1 वे दोनों प्रानन्दपूर्वक मथुरा में रहने लगे। कंस मृत्यु को शंका से शकित हम्रा उनकी पहल की अपेक्षा अधिक अभ्यर्थता और सेवा सुश्रूषा करने लगा।
देवकी ने तीन बार गर्भ धारण किये और तीनों बार युगल पुत्र उत्पन्न हए । इन्द्र की पाज्ञा से सुनंगम देव ने प्रत्येक वार देवकी के पुत्रों को सुभद्रिलनगर के सेठ सुदष्टि की पत्नी अलका के यहाँ और अलका के युगल मत पूत्रों को देवकी के यहाँ पहुँचा दिया। कंस ने उन मृत पुत्रों को शिला पर पछाड़ दिया। वे छहों पुत्र अलका सेठानी के घर पर रह कर दूज के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगे। उनका रूप, लावण्य और पुण्य अद्भुत था। उनके नाम इस प्रकार थे-नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुध्न प्रोर जितशत्रु ।