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नारायण कृष्ण
वसुदेव क्रूर कंस के दुष्ट अभिप्राय को समझ गये । उन्होंने अपने अनावृष्टि नामक पुत्र से परामर्ष किया और उसे शौर्यपुर अपने सब भाईंयों को बुलाने भेज दिया। समाचार मिलते ही महाराज समुद्रविजय और उनके श्राठों भाई रथ, घोड़े, हाथी और पदाति सेना लेकर चल दिये और मथुरा जा पहुँचे । जब कंस को उनके श्रागमन की सूचना मिली तो उसका हृदय शंकित हो उठा। किन्तु उसे श्राश्वस्त कर दिया गया कि ये लोग चिरकाल से वियुक्त प्रपने भाई वसुदेव से मिलने आये हैं, तब वह उनके स्वागत के लिये पहुँचा और सबको सम्मानसहित नगर में लाया, उन्हें उत्तम भवनों में ठहराया और सब प्रकार का उचित आतिथ्य किया ।
समय अनुकूल समझ कर बलभद्र कृष्ण को लेकर नदी पर स्नान करने गये और वहाँ उन्हें कंस की दुरभिसन्धि, कृष्ण के जन्म से पूर्व कंस द्वारा देवकी के सभी पुत्रों की तथाकथित हत्या, समय से पूर्व कृष्ण का जन्म और छिपाकर नन्द गोप के घर पहुँचाने आदि के समाचार विस्तार से बताये । साथ ही प्रतिमुक्तक मुनि की भविष्यवाणी सुनाते हुये कहा - 'कंस मल्ल विद्या के बहाने तुम्हारा वध करना चाहता है। उसने इस प्रकार के कई प्रयत्न किये हैं ।' कृष्ण बलभद्र से अपने वास्तविक वंश, माता-पिता बन्धु और दुष्ट कंस के समाचार सुनकर प्रत्यन्त सन्तुष्ट हुए। फिर दोनों भाई तैयार होकर गोपों के साथ मथुरा की घोर चले।
लोग नगर में प्रवेश करते हुए जब द्वार पर पहुँचे तो शत्रु की योजनानुसार चम्पक और पादाभर नामक दो हाथी उन लोगों की प्रोर हूल दिये गये । वे लोग पहले से ही सावधान थे। तुरन्त हो बलभद्र ने चम्पक को घर दबाया और कृष्ण पादाभर से जूझ गये। उन मत्त गयन्दों ने अपने दांत, सूंड़ और पैरों के प्रहार से उन दोनों नरसिंहों को चूर-चूर करना चाहा, किन्तु सिंह के समान उन दोनों वीरों ने अपनी मुष्टिका और पाद प्रहारों से उन गजों का मदविगलित कर दिया और वे उनके कठिन प्रहारों से चीत्कार करने लगे ।
शत्रु की योजना को इस प्रकार विफल करके दोनों वीर भ्राता गोपमण्डली के साथ रंगभूमि में पहुँचे । वहाँ पहुंचते ही बलभद्र ने संकेत से कृष्ण को समझा दिया कि यह है शत्रु कंस और ये हैं शत्रु पक्ष के लोग। ये सामने अपने पुत्रों सहित समुद्रविजय आदि बन्धु बैठे हैं ।
वहीं मल्ल युद्ध देखने के लिए धनेक नगरवासी, नगर के अधिकारी और राजा लोग एकत्रित थे । कंस की प्राज्ञानुसार मल्ल युद्ध प्रारम्भ हुआ । मल्लों के कई जोड़े रंगभूमि में आये और अपने-अपने कौशल दिखाकर चले गये । तब कंस ने कृष्ण से युद्ध करने के लिये अपने राजकीय मल्ल चाणूर को भेजा । उसने संकेत से मुष्टिक मल्ल को भी कृष्ण के ऊपर टूट पड़ने का संकेत कर दिया।
कृष्ण और चाणूर दोनों मुष्टि-युद्ध में जुट गये । अवसर देखकर मुष्टिक मल्ल श्राकर पीछे से कृष्ण पर प्रहार करना ही चाहता था, तभी विद्युत् गति से बढ़कर बस बस ठहर' कहते हुए बलभद्र ने मुष्टिक के जबड़ों और सिर पर भारी मुष्टिका प्रहार करके उसे प्राणरहित कर दिया । उधर कृष्ण के साथ विशाल आकारवारी दैत्य सम चाणूर जूझ रहा था। कृष्ण ने चाणूर को अपने वक्ष स्थल से लगाकर इतनी जोर से दबाया कि उसके मुख से रुधिर की धारा बह निकली और गतप्राण हो गया। जब कंस ने अपने दोनों महलों को प्राणरहित देखा तो वह क्रोध से नथुने फुलाता हुआा तलवार लेकर उन्हें मारने दौड़ा। कृष्ण ने सामने आते हुए शत्रु के हाथ से तलवार छीन ली और मजबूती से उसके बाल पकड़ कर उसे पृथ्वी पर पटक दिया। तत्पश्चात् उसके पैरों को पकड़कर उसे पत्थर पर पछाड़ कर मार डाला । कंस को मारकर कृष्ण हँसने लगे ।
राजा की हत्या से क्षुब्ध होकर कंस की सेना शस्त्र संभाले आगे बढ़ी। बलभद्र ने क्रोधवश मंच का एक स्तम्भ उखाड़ लिया और उसों से सेना पर बज्र तुल्य प्रहार करने लगे। उन्होंने कंस को सेना को अल्पकाल में ही परास्त कर दिया। तब कंस की सेवा में नियुक्त जरासन्ध की सेना मागे माई। उस सेना को बढ़ते देखकर यादवों को सेना उस पर टूट पड़ा और शत्रु सैनिकों को समाप्त करने में उन्हें विशेष समय नहीं लगा ।
माता-पिता से कृष्ण का मिलन – बलभद्र और कृष्ण दोनों भाई मनावृष्टि के साथ रथ में प्रारूढ़ होकर अपने पिता के घर गये। वहाँ पर महाराज समुद्रविजय और उनके सभी भाई पहले ही पहुँच चुके थे। दोनों भाइयों ने जाकर समुद्रविजय आदि गुरुजनों को नमस्कार किया। गुरुजनों ने उन्हें प्राशीर्वाद दिया । अपने चिर वियुक्त पुत्र